Friday, January 8, 2021

भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

एकनवतितम: सर्ग: 


भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार 


पिठर, घड़े, छोटे-बड़े मटके, सुस्वादु दही से भरे थे 

केसर मिश्रित पीतवर्ण के, तक्र के तालाब भरे थे 


जीरा, सोंठ मसालों से, मिश्रित तक्र के कुंड वहाँ थे 

दूध, दही के थे तालाब, शक्कर के भी ढेर लगे थे 


स्नान के थे जो भी अभिलाषी, उनको घाटों पर नदी के 

पिसे आंवले, चूर्ण सुगन्धित, रखे दिखे नाना पदार्थ थे 


ढेरों, दातुन, सफेद कूँचे के, चन्दन भी विद्यमान थे 

स्वच्छ दर्पण, वस्त्र अनेकों, खड़ाऊं और जूते भी थे 


काजल सहित कजरौटे, कंघे, कूर्च, छत्र, धनुष पड़े थे 

कवच, शय्या, आसन आदि भी, वहाँ दृष्टिगोचर होते थे 


गधे, ऊंट, हाथी, घोड़ों हित, स्वच्छ कई जलाशय भरे थे 

जिनके घाट उतरने योग्य, कमल और उत्पल भी खिले थे 


निर्मल था जल गगन समान, तैरा जा सकता था जिसमें 

पशुओं के भोजन हेतु भी, कोमल घास के ढेर वहाँ थे 


महर्षि भारद्वाज के द्वारा, अनिवर्चनीय अतिथि सत्कार  

अद्भुत तथा स्वप्न समान था, जैसे देवों का हो विहार 


सभी हुए आश्चर्यचकित वे, सुख से बीती थी  वह रात 

ततपश्चात नदी, गन्धर्व, अप्सराओं ने किया प्रस्थान 


हुआ सवेरा तब भी वे सब, उसी तरह उन्मत्त लग रहे 

अंगों पर चंदन का लेप, पुष्पहार जहाँ-वहाँ पड़े थे 




इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में इक्यानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ.

 

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