श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
द्विनवतितम: सर्ग:
भरत का भरद्वाज मुनि से जाने की आज्ञा लेते हुए श्रीराम के आश्रम पर जाने का मार्ग जानना और मुनि को अपनी माताओं का परिचय देकर वहां से चित्रकूट के लिए सेना सहित प्रस्थान करनाअश्रु गद्गद वाणी से यह केह, रोष से भर गए भरत अति
लंबी श्वासें खींच रहे थे, ज्यों सर्प फुफकारता कोई
रामावतार का जान प्रयोजन, भरद्वाज ने कहा उनसे
कैकेयी को दोष न दो तुम, हित ही होगा इस घटना से
आगे जाकर सुखद ही होगा, श्रीराम का यही वनवास
दानव, देव, महर्षियों के हित, समुचित है जंगल में वास
श्रीराम का पता जानकर, लेकर आशीष महर्षि का तब
हुए कृतकृत्य झुकाया मस्तक, आज्ञा ली प्रदक्षिणा कर
भिन्न-भिन्न वेषधारी मनुष्य, दिव्य रथों पर हुए सवार
सजे हुए हाथी व हथिनियाँ, करें गर्जना हुए तैयार
छोटे-बड़े वाहन पर चढ़, चले अधिकारी, पैदल सैनिक
कौसल्या आदि रानियाँ, चलीं दर्शन की अभिलाषा भर
कान्तिमयी एक शिविका में, बैठे, भरत ने किया प्रस्थान
जिसे कहारों ने उठाया, थी नव सूर्य चन्द्रमा समान
दक्षिण दिशा को घेरे उमड़ी, महामेघ की घटा समान
अश्वों-गजों से भरी हुई वह, विशाल वाहिनी थी महान
गंगा पार पर्वत, वन को, जो मृग, पक्षियों से थे सेवित
लांघ गयी सेना विशाल वह, होती थी प्रतीत अति शोभित
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में बानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ.
वाह
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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