Thursday, June 27, 2019

भरत की वनयात्रा और श्रृंगवेरपुर में रात्रिवास


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


त्र्यशीतितमः सर्गः
भरत की वनयात्रा और श्रृंगवेरपुर में रात्रिवास

तत्पश्चात प्रातः होते ही, आरूढ़ हुए उत्तम रथ पर
चले श्रीराम के दर्शन हेतु, शीघ्रता पूर्वक भरत फिर

आगे-आगे सभी मंत्री, और पुरोहित बैठेे रथों पर
सूर्य देव के रथ जैसे वे, अति तेजस्वी थे और प्रखर

जो विधिपूर्वक गये सजाये, नौ हजार हाथी चलते थे
पीछे-पीछे दशरथ नन्दन के, साठ हजार रथ गये थे 

आयुध ले कई प्रकार के, वीर धनुर्धर योद्धा भी थे
एक लाख ही घुड़सवार भी, अनुसरण उनका करते थे

कैकेयी, सुमित्रा, कौसल्या, तीनों ने प्रस्थान किया
ब्राह्मण आदि सभी आर्यजन, हर्षित हो करते थे यात्रा

उतम व्रत के पालनकर्त्ता, स्थितप्रज्ञ, दुःख हरने वाले
कब श्रीराम का दर्शन होगा, आपस में कहे जाते थे

जैसे सूर्यदेव उदित हो, हर लेते हैं सभी अँधेरा
श्रीराम के सम्मुख आते, मिट जायेगा शोक हमारा

इस प्रकार चर्चा करते थे, हर्षित होकर सभी नागरिक
सम्मानित जन, व व्यापारी, मणिकार, कुम्भकार, मायूरक

रोचक, दंतकार, दरजी व, सुधाकार, गंधी, सोनार
बुनकर, वैद्य, धूपक, धोबी, गोपालक, केवट, मनिहार

सदाचारी कई वेदवेत्ता, था समाहित मन जिनका
बैल गाड़ियों पर चढ़कर, सब करते थे वन की यात्रा

शुद्ध वस्त्र किये थे धारण, अंगराग भी लाल लगाये
भरत के पीछे सभी जा रहे,  कई प्रकार के वाहन से

भातृवत्सल कैकेयी नंदन, भाई को लौटाने जाते
हर्ष और आनंद में भरी, सेना चलती पीछे-पीछे

रथ, पालकी, घोड़े, हाथी से, लंबा मार्ग तय कर पहुँचे 
श्रंगवेरपुर में आकर तब, गंगा जी के तट पर आये

राम सखा गुह निषादराज, भाई-बन्धु सहित रहता था
चक्रवाकों से अलंकृत वह, गंगा का तट अति सुंदर था

सेना ठहर गयी जब आकर, कहा भरत ने तब सचिवों से
आज रात्रि विश्राम यहाँ कर, कल हम गंगा पार करेंगे

जलांजलि दूँ महाराज को, इक यह भी है मेरा प्रयोजन
पारलौकिक कल्याण हो उनका, गंगाजी का हो पूजन

तथास्तु कहकर मंत्रियों ने, आज्ञा उनकी की स्वीकार
भिन्न-भिन्न स्थानों पर तत्क्षण, सब सैनिकों को दिया उतार

खेमे आदि हुए सुशोभित,उस तट पर महानदी गंगा के
श्रीराम का चिन्तन करते, वहीं रात्रि निवास किया भरत ने

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में तिरासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.

Friday, June 14, 2019

भरत का वन में चलने की तैयारी के निमित्त सबको आदेश देना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


द्व्यशीतितमः सर्गः

वसिष्ठ जी का भरत को राज्य पर अभिषिक्त होने के लिए आदेश देना तथा भरत का उसे अनुचित बताकर अस्वीकार करना और श्रीराम को लौटा लाने के लिए वन में चलने की तैयारी के निमित्त सबको आदेश देना

अपने उर में रखकर इसको, धर्मसंगत बात तब कहें
श्रेष्ठ गुणों में हैं श्रीराम, अवस्था में भी मुझसे बड़े

दिलीप और नहुष की भांति, हैं अति तेजस्वी भ्राता राम
महाराज दशरथ की भांति, है राज्य पर उनका अधिकार

पाप आचरण नीच ही करते, निश्चय ही नर्क ले जाता
राज्य राम का लेकर मैं भी, पापी व कलंकी कहलाता 

माँ का पाप मुझे नहीं भाता, इसीलिए यहाँ रहकर भी
दुर्गम वन में रहने वाले, श्रीराम को करता विनती

उनका ही अनुसरण करूंगा, नरश्रेष्ठ, राजा हैं वही
अवध ही नहीं तीन लोक के, राजा होने के योग्य वही

धर्मयुक्त वचन ये सुनकर, हर्ष के आँसूं बहे सभी के
श्रीराम में चित्त लगाकर, भरत को देखा बड़े प्रेम से

पुनः कहा भरत ने सब से, राम को यदि लौटा न पाऊँगा 
नरश्रेष्ठ लक्ष्मण की भांति, मैं भी वन में निवास करूँगा

आप सभी पूज्यों के सम्मुख, सद्गुणों से जो हैं युक्त 
पूर्ण चेष्टा मैं करूँगा, श्रीराम को लौटा लाने हित

मार्गशोधन में जो कुशल हैं, वेतन भोगी व अवैतनिक
पहले ही भेजा है उनको, अब हमारा भी जाना उचित

सभासदों से ऐसा कहकर, भातृवत्सल श्रेष्ठ भरत तब
मंत्रवेत्ता सुमन्त्र से बोले, आज्ञा पालन हो तुरंत अब

सबको वन जाने को कहिये, सेना को भी शीघ्र बुलाएं
बड़े हर्ष से तब सुमन्त्र ने, सबको यह आदेश सुनाये

श्रीराम को लौटा लाने, भरत और सेना जायेंगे
प्रसन्न हुए प्रजाजन यह सुन, सेनापति भी अति हर्षाये

घर-घर में स्त्रियाँ हो हर्षित, पतियों को करने लगीं प्रेरित
अश्व, गज, बैल गाड़ी, रथ, सभी जुतेंगे यात्रा के हित

सेना को उद्यत देखकर, अपने रथ को भी मंगवाया
बड़े वेग से गये सुमन्त्र, जुता हुआ उत्तम रथ आया

तब प्रतापी भरत ने कहा, कल ही सेना कूच करेगी
श्रीराम को लाना चाहता, कर प्रसन्न, जगत के हित ही 

उत्तम आज्ञा भरत की पा, सुमन्त्र ने आदेश सुनाया
घर-घर में सबने उठकर तब, हाथी घोड़ों को जुतवाया


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में बयासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.



Wednesday, June 12, 2019

भरत का वन में चलने की तैयारी के लिए आदेश देना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


द्व्यशीतितमः सर्गः

वसिष्ठ जी का भरत को राज्य पर अभिषिक्त होने के लिए आदेश देना तथा भरत का उसे अनुचित बताकर अस्वीकार करना और श्रीराम को लौटा लाने के लिए वन में चलने की तैयारी के निमित्त सबको आदेश देना

उत्तम ग्रह-नक्षत्र से शोभित, श्रेष्ठ जन व वसिष्ठ थे जहाँ
पूर्णिमा की रात्रि की भांति, उस सभा को भरत ने देखा

यथायोग्य आसन पर बैठे, उनके वस्त्रों की आभा से
उत्तम सभा दीप्त हो उठी, अंगरागों की महा प्रभा से

वर्षाकाल बीतने पर ज्यों, शरद रात्रि सुशोभित होती
विद्वानों के समूह से सज्जित, वह सभा सुंदर लगती थी

राजा की सम्पूर्ण प्रकृतियां, देख उपस्थित उस सभा में 
धर्म के ज्ञाता मुनि वसिष्ठ ने, मधुर वचन ये कहे भरत से

धन-धान्य से परिपूर्ण यह, समृद्धिशालिनी पृथ्वी देकर
स्वर्गवासी हुए हैं राजा, धर्म का सदा आचरण कर

सत्पुरुषों के धर्म पर चले, सत्यवादी श्रीरामचन्द्र भी
आज्ञा नहीं त्यागी पिता की, जैसे चन्द्र न तजे चाँदनी

पिता और बड़े भाई ने, अकंटक राज्य तुम्हें सौंपा
पालन करो मंत्रियों के संग, शीघ्र ही लो अभिषेक करा

चार दिशाओं व दूर देश के, राजा व व्यापारी गण भी
रत्न असंख्य देंगे तुम्हें फिर, सागर के व्यवसायी भी

सुन बात यह शोक में डूबे, राम शरण में गये मन से
भरी सभा में अश्रु बहा, कर विलाप कहा गद्गद् वाणी से

 रहे सदा ब्रह्मचारी जो, कुशल अति सब विद्याओं में
धर्म हेतु जो प्रयत्नशील हैं, कैसे लूँ उनका राज्य मैं

राजा का कोई भी पुत्र, राज्य न लेगा बड़े भाई का
यह राज्य व मैं दोनों ही, श्रीराम के ही हैं, यही माना




Saturday, June 8, 2019

मंगलवाद्य घोष को सुनकर भरत का दुखी होना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


एकाशीतितमः सर्गः


प्रातःकल के मंगलवाद्य घोष को सुनकर भरत का दुखी होना और उसे बंद कराकर विलाप करना, वसिष्ठजी का सभा में आकर मंत्री आदि को बुलाने के लिए दूत भेजना

अभ्युदय सूचक उस रात्रि का, अल्प भाग ही रहा शेष जब
करने लगे थे स्तवन भरत का, मंगल स्तुति से सूत-मागध

बजी दुन्दुभि स्वर्ण दंड से, प्रहर समाप्ति को सूचित करने
घोष वाद्यों का गूँजा, बजने लगे शंख, कई बाजे

पूर्ण गगन को करे व्याप्त जो, तुमुल नाद जब सुना भरत ने
नींद खुली उस ध्वनि को सुनकर,  जलने लगे पुनः शोकाग्नि में

'नहीं नरेश मैं' कहकर उनको, बंद कराया तुरंत भरत ने
कैकेयी ने अपकार किया है, वचन कहे ये शत्रुघ्न से

बोझ दुखों का डालके मुझपर, स्वर्गलोक को गये हैं राजा
बिन नाविक की नौका जैसी, राजलक्ष्मी हुई है विधवा

स्वामी व सरक्षक हैं जो, उन राम को मेरी माँ ने
भेज दिया है घोर वनों में, सद्धर्म को तिलांजलि दे  

देख विलाप भरत का दारुण, सभी स्त्रियाँ रनिवास की
दीनभाव से फूट-फूटकर, आतुर हुईं रोने लगीं थीं

राजधर्म के जो ज्ञाता थे, महायशस्वी महर्षि वसिष्ठ ने
 उसी समय प्रवेश किया था, नृप दशरथ के सभा भवन में

बना सुवर्ण का था अधिकांश, लगे हुए थे स्वर्ण स्तम्भ
सभा रमणीय शोभा पाती, देवों की सुधर्मा सभा सम

वेदों के ज्ञाता वशिष्ठ ने, शिष्यों संग प्रवेश किया
सुवर्ण पीठ पर आकर बैठे, दूतों से यह वचन कहा

शांतभाव से तुम सब जाकर, शीघ्र बुलाओ ब्राह्मणों को
क्षत्रियों, व योद्धाओं संग, आओ लेकर अमात्यों को

भरत, शत्रुघ्न, सब राजकुमार, मंत्री युधाजित व सुमंत्र को  
है आवश्यक कार्य हमें उनसे, बुला के लाओ शीघ्र सभी को

कोलाहल आरम्भ हुआ तब, घोड़े, हाथी व रथों का
किया भरत का स्वागत सबने, करें देवता ज्यों इंद्र का

तिमी मछली, जलहस्ती जिसमें, स्थिर जल व मुक्ता से युक्त
शंख, बालुका युक्त सिन्धु सम, भरत से सभा हुई थी शोभित


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में इक्यासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.