Friday, September 26, 2014

शुभकामना

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
आने वाले सभी पर्वों के लिए शुभकामना के साथ अगले दस-बारह दिनों के लिए विदा. आज ही हम बंगलुरु तथा कुर्ग की यात्रा पर जा रहे हैं. आशा है आप सभी के जीवन में विजयादशमी का उत्सव नई विजय की सूचना लेकर आएगा. परमात्मा हर क्षण हम सभी के साथ है.

अनिता 

Monday, September 22, 2014

विश्वामित्र का तपस्या करके महादेवजी से दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठ के आश्रम पर प्रयोग करना एवं वसिष्ठ जी का ब्रह्म दंड लेकर उनके सामने खड़ा होना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पंचपञ्चाशः सर्गः


अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके महादेवजी से दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठ के आश्रम पर प्रयोग करना एवं वसिष्ठ जी का ब्रह्म दंड लेकर उनके सामने खड़ा होना 

देवों, यक्षों, गन्धर्वों के, दानव और राक्षसों के भी
प्रकट हों मेरे हृदय में, अस्त्र महर्षियों के भी स्वामी

यही मनोरथ है मेरा प्रभु, यही मुझे वरदान मिले
‘ऐसा ही हो’ महादेव कह, दे वरदान चले गये

हुआ घमंड अति राजा को, पाकर अस्त्र महादेव से
सागर ज्यों बढ़ता पूनम को, स्वयं को बढ़ा-चढ़ा मानें

मरा हुआ ही माना मुनि को, गये आश्रम पर उनके
भांति-भांति के अस्त्रों का तब, वे प्रयोग करने लगे

दग्ध हुआ तपोवन सारा, भाग चले सैकड़ों मुनिगण
पशु-पक्षी और शिष्यगण भी, भाग गये भयाकुल होकर

सूना हुआ आश्रम सारा, पल में छाया सन्नाटा
कहने लगे मुनि वसिष्ठ तब, अभी नष्ट मैं इनको करता

रोषपूर्वक बोले राजा से, नष्ट किया तूने आश्रम
चिरकाल से जिसे था पोसा, हरा-भरा था जो उपवन

है विवेकशून्य तू पापी, और दुराचारी भी है
नहीं रहेगा सकुशल तू, कितना अत्याचारी है

कहकर ऐसा हुए क्रुद्ध वे, धूम रहित कालाग्नि सम  
डंडा लिया सामना करने, अति भयंकर यमदंड सम


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचपनवाँ सर्ग पूरा हुआ.




Tuesday, September 16, 2014

अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके महादेवजी से दिव्यास्त्र पाना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पंचपञ्चाशः सर्गः

अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके महादेवजी से दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठ के आश्रम पर प्रयोग करना एवं वसिष्ठ जी का ब्रह्म दंड लेकर उनके सामने खड़ा होना

विश्वामित्र के अस्त्रों से जब, घायल होकर हुए वे व्याकुल
और सैनिकों की सृष्टि कर, कहा धेनु को लगा योगबल

फिर हुंकार किया गाय ने, जिससे उपजे थे कम्बोज
सूर्य समान तेजस्वी थे वे, बर्बर हुए थनों से उत्पन्न

योनि देश से यवन हुए थे, शकृदेश से शक आये
रोमकूप से उपजे म्लेच्छ, हारीत और किराट हुए

रघुनन्दन उन सब वीरों ने, तब भारी प्रहार किया
पैदल, हाथी, घोड़े, रथ संग, सेना का संहार किया
  
अति कुपित हो सौ पुत्र तब, टूट पड़े वसिष्ठ मुनि पर
हुंकार मात्र से ही मुनि ने, भस्म किया उन्हें जलाकर

दो ही पल में भस्म हुए वे, नष्ट हुए सेना के संग
लज्जित हुए विश्वामित्र तब, शांत हुआ तब उनका वेग

दंत विहीन सर्प समान, राहु ग्रस्त सूर्य की भांति
हुए तत्काल निस्तेज वे, पंख कटे पक्षी की भांति

नष्ट हुआ था बल सारा, उत्साह भी नष्ट हुआ
खिन्न हुए थे मन ही मन वे, एक पुत्र ही शेष रहा

राजा के पद पर बैठा कर, आज्ञा दी उसको शासन की
गये हिमालय तप करने वे, पूजा करते महादेव की

प्रकट हुए भगवान वृषभ ध्वज, जब बीता था कुछ काल
पूछ तप करने का कारण, थे उत्सुक वर देने तत्काल

कर प्रणाम कहा मुनि ने, यदि आप संतुष्ट हैं मुझसे
अंग, उपांग, व सहित उपनिषद, धनुर्वेद मुझे प्रदान करें  


Wednesday, September 3, 2014

गौ का दुखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञा से शक, यवन, पहल्व आदि वीरों की सृष्टि करके उनके द्वारा विश्वामित्र जी की सेना का संहार करना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

चतुःपञ्चाशः सर्गः

विश्वामित्र का वसिष्ठ जी की गौ को बलपूर्वक ले जाना, गौ का दुखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञा से शक, यवन, पहल्व आदि वीरों की सृष्टि करके उनके द्वारा विश्वामित्र जी की सेना का संहार करना

कामधेनु गौ को देने को, मुनि न जब तैयार हुए
तब राजा उस चितकबरी को, बल पूर्वक लिए चले

सुनो राम ! शोकाकुल गाय, मन ही मन हुई अति दुखी
त्याग दिया क्या मुझे मुनि ने, मन में यह चिन्तना की

क्या अपराध किया है मैंने, उन महान पवित्र मुनि का
भक्त जानकर भी जो अपना, त्याग कर दिया है मेरा

यही सोचकर दीर्घ श्वास ले, झटक सैनिकों को राजा के
बड़े वेग से जा पहुँची वह, पास महातेजस्वी मुनि के

वायु के समान वह शबला, मुनि चरणों के पास गयी
मेघ समान गम्भीर स्वर से, रोती हुई मुनि से बोली  

त्याग दिया क्या मुझे आपने, सैनिक मुझको लिए जा रहे
थी संतप्त शोक से जो, मुनि उस बहन समान से बोले  

नहीं त्याग करता मैं तेरा, नहीं कोई अपराध तुम्हारा
निज बल से मतवाले होकर, लिए जा रहे हैं यह राजा

इनसा बलशाली मैं नहीं हूँ, यह राजा के पद पर आसीन
हैं क्षत्रिय, पालक पृथ्वी के, सेना से भी अति बलवान

हाथी, घोड़े, रथ युक्त है, अक्षौहिणी सेना बल शाली
फहराते हैं ध्वज हौदों पर, शबला सुन यह तब बोली

क्षत्रिय का बल नहीं है बल, ब्राह्मण हैं अधिक बलवान
दिव्य अति है बल ब्राह्मण का, अप्रमेय, दुर्धर्ष, महान

ब्रह्म बल से पुष्ट हुई मैं, यह दुरात्मा राजा बलवान
आज्ञा दें आप केवल यह, चूर्ण करूं इसका अभिमान

कामधेनु के ऐसा कहने पर, मुनि वसिष्ठ ने आज्ञा दी
नष्ट करे शत्रु सेना को, सृष्टि करो सैनिकों की

सुनकर गौ ने किया वही तब, इक हुंकार भरी जैसे
वीर सैकड़ों तब उपजे थे, तुरंत वहाँ पहल्व जाति के

करने लगे नाश सेना का, बड़ा विनाश ढाते थे सैनिक
आँख फाड़ कर बड़े रोष से, विश्वामित्र बस देख रहे थे

छोटे-बड़े कई अस्त्रों का, तब किया प्रयोग राजा ने
पह्ल्वों का संहार कर डाला, तत्क्ष्ण ही विश्वामित्र ने

शबला ने महा पराक्रमी, सैनिकों को फिर उपजाया
 यवन मिश्रित शक जाति के, वीरों से जग भर आया

केसर सम, सुवर्ण मयी थी, तन की कांति उन वीरों की
तीखे खड्ग, पट्टिश लिए थे, आभा थी प्रज्वलित अग्नि सी

भस्म करना आरम्भ किया तब, विश्वामित्र की उस सेना को
अस्त्र छोड़े राजा ने उन पर, व्याकुल किया था शक सेना को

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौवनवाँ सर्ग पूरा हुआ.