Saturday, January 30, 2021

सेना सहित भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन

 

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

त्रिनवतितम: सर्ग: 

सेना सहित भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन 


हो विशाल सेना से पीड़ित, हाथी यूथ संग भाग चले 

रीछ, रुरु, चितकबरे मृग कई, तट, वन, पर्वत में व्यथित हुए 


कोलाहल करती चलती थी, चतुरंगिणी विशाल वह सेना 

ज्यों आकाश को ढकते बादल, दूर तक भूभाग ढक गया  


दशरथ नंदन भरत जा रहे, हो अति प्रसन्न घिरे सेना से 

अश्व, गजों से भरी महान, आती नहीं थी पूर्ण दृष्टि  में 


दीर्घ मार्ग तय करने पर जब, सवारियाँ हुईं थीं अति क्लांत 

कहा भरत ने मुनि वसिष्ठ से, शायद यही है गन्तव्य स्थान 


जैसा किया था मुनि ने वर्णन, वैसा है स्वरूप यहां का 

मन्दाकिनी नदी बहती है, दर्शन चित्रकूट पर्वत का 


नील मेघ सा शोभित होता, वन पर्वत के आसपास का 

अवमर्दन करते हैं हाथी, ऊँचे पर्वत के शिखरों का 


शत्रुघ्न से कहा भरत ने, देखो पर्वत की घाटियों में  

मगरों से ज्यों भरा हो सागर, भरी हुई अब हैं सेना से  


किन्नर जहाँ विचरण करते हैं, भाग रहे झुंड मृगों के 

जैसे शरतकाल में बादल, हों शोभित जब उड़ें पवन से 


ये सैनिक या वृक्ष मस्तक पर, पुष्पों को धारण करते हैं 

 मेघ समान ढाल धारे ज्यों, दक्षिण भारतीय रहते हैं 


जनशून्य यह जंगल पहले, अति भीषण प्रतीत होता था 

वही भरा है अब लेगों से,  जान पड़े अयोध्या पुरी सा 


घोड़ों की टापों से उड़ी जो, धूल गगन को ढक लेती है 

हवा उसे मेरा प्रिय करती, शीघ्र दूर उड़ा देती है 


श्रेष्ठ सारथियों से संचालित, जुटे अश्व से रथ चलते हैं 

अति सुंदर  जो लगें दृष्टि को, मोर सैनिकों से डरते हैं 


ऐसे ही तुम जरा निहारो, निज आवास को उड़ते पक्षी

देश अति मनोहर है यह, सत्य ही स्वर्गीय पथ यह स्थली  


मृगियों संग विचरण करते, चितकबरे मृग मनोहर लगते 

मानो इन्हेँ किया हो चित्रित, सुसज्जित सुंदर फूलों से 


आगे बढ़ें हमारे सैनिक, जाकर और वनों में खोजें 

पुरुषसिंह राम, लक्ष्मण को हम, अति शीघ्र जिससे हम पा लें 


भरत का यह वचन सुना तो, शूरवीर हथियार लिए कई 

उस वन में प्रवेश कर गए, जहाँ धुआँ उठता दिया दिखाई 


देख धूमशिखा को लौटे, कहा भरत से, वहाँ कोई है 

मानव बिना अग्नि नहीं सम्भव, राम, लक्ष्मण वहीं बसे हैं 


यदि वे दोनों न भी हुए, कोई तपस्वी जन तो होंगे 

आगे अब मैं ही जाऊंगा, सुन यह  बात कहा भरत ने


सावधान हो तुम ठहरो, मेरे साथ सुमन्त्र, धृति होंगे 

भरत ने धूएँ को तब देखा, सैनिक सभी वहीं ठहर गए


हर्षपूर्वक वहीं खड़ी थी, सेना भू का निरीक्षण करती 

सबको यह ज्ञात हुआ था, शीघ्र आएगी घड़ी मिलन की  


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में तिरानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ.


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