Wednesday, September 30, 2015

महर्षि वसिष्ठ का अंतःपुर के द्वार पर आगमन और सुमन्त्र को महाराज के पास भेजना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

चतुर्दशः सर्गः  
कैकेयी का राजा को सत्य पर दृढ़ रहने के लिए प्रेरणा देकर अपने वरों की पूर्ति के लिए दुराग्रह दिखाना, महर्षि वसिष्ठ का अंतःपुर के द्वार पर आगमन और सुमन्त्र को महाराज के पास भेजना, राजा की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम को बुलाने के लिए जाना 

तीखे कोड़े की मार से, पीड़ित हुए अश्व की भांति
कैकेयी से व्यथित हुए, राजा ने यह बात कही

बंधा धर्म के बंधन में, लुप्त चेतना होती मेरी
धर्म परायण प्रिय पुत्र को, देखने की लालसा मेरी

बीती रात हुआ प्रभात, सूर्यदेव का उदय हुआ
पुण्यनक्षत्र के योग में, शुभ मुहूर्त आ पहुँचा 

अभिषेक की सामग्री का, संग्रह कर शीघ्रता पूर्वक    
शिष्यों सहित वहाँ आये, मुनि वसिष्ठ शुभगुण सम्पन्न

सजी हुई थी पुरी उस समय, सारी नगरी उत्सुक थी
व्याप्त हो रही थी सुगंध, चन्दन, अगर, धूप आदि की

राजा के अंतः पुर आये, जनसमुदाय को देखा
भीतर से आते हुए, सचिव सुमन्त्र को भी देखा

कहा मुनि ने तब सुमन्त्र से, राजा को सूचना दो
सारी सामग्री एकत्र है, जाकर उनको यह कह दो

गंगा जल से भरे कलश, सागर जल स्वर्ण कलश में
भद्रपीठ गूलर लकड़ी का, बीज, गंध भांति-भांति के

किया प्रवेश भवन में उनके, सूत पुत्र तब सुमन्त्र ने
राजा की स्तुति करते थे, रोका उन्हें नहीं किसी ने

राजा के निकट जाकर वह, पहले की भांति कहते थे
जागें शीघ्र महाराज अब, अपरिचित थे उनकी हालत से

रात्रि देवी विदा हो गयीं, अभिषेक की तैयारी है
शीघ्र आज्ञा दें अब आप, आप ही से पुरी न्यारी है