Wednesday, January 4, 2023

ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

द्वादशाधिकशततम: सर्ग:


ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना, भरत का पुनः श्रीराम के चरणों में गिरकर चलने की प्रार्थना करना, श्रीराम का उन्हें समझाकर अपनी चरण पादुका देकर उन सबको विदा करना 


उन अनुपम वीर भाइयों का, रोमांच युक्त देख समागम 

विस्मय से भर गये महर्षि, जिनका हुआ था वहाँ आगमन 


अदृश्य भाव से अंतरिक्ष में, प्रत्यक्ष भी जो मुनिजन थे 

ककुत्स्थ वंशी उन बंधु गण की, करने लगे प्रशंसा ऐसे 


दोनों राजकुमार श्रेष्ठ हैं, धर्म मार्ग पर चलने वाले 

बार-बार इनको सुनने की,  इच्छा होती है अंतर में 


दशग्रीव रावण के वध की, अभिलाषा थी जिनके मन में 

ऋषियों ने मिलकर आपस में, तभी  कही यह बात भरत से 


महाप्राज्ञ ! तुम उत्तम कुल वंशी, आचरण भी अति महान 

यदि तुम पिता का भला  चाहते, मान लो श्रीराम की बात 


पिता के ऋण से मुक्त हों राम, हम ऐसा देखना चाहें 

कैकेयी का ऋण चुकाकर, पहुँचे हैं महाराज  स्वर्ग में 


इतना कहकर वहाँ जो आए, गंधर्व, महर्षि व राजर्षि 

लौट गए निज स्थानों को, परम पूज्य वहाँ उपस्थित महर्षि  


जगत का कल्याण हैं करते, दर्शन केवल  दे जो अपने 

श्री राम हुए थे अति प्रसन्न, ऋषियों के वचनों को सुन के 


हर्षित हुए  खिला मुख उनका, अति शोभित हुए थे श्रीराम 

की महर्षियों की अति  प्रशंसा, किंतु भरत का काँपा गात 


लड़खड़ाती हुई वाणी में, कर जोड़ वह राम से बोले 

ककुत्स्थकुल भूषण हे भाई !, बड़े पुत्र होने के नाते 


राज्य ग्रहण पर अधिकार आपका, इस धर्म पर दृष्टि डालें

मैं, मेरी माता करती हैं, याचना हमारी सफल करें  


इस विशाल राज्य की रक्षा, मैं अकेले नहीं कर सकता 

पुरवासी जिन्हें प्रेम आपसे, उन्हें प्रसन्न नहीं रख सकता 


बाट जोहते हैं किसान ज्यों, उसी प्रकार सभी जनवासी 

योद्धा, मित्र, सुहृद, बांधव सब, बाट जोहते हैं आपकी 


राज्य को स्वीकार आप करें, फिर अन्य किसी को दे देवें 

वही पुरुष समर्थ हो सकता, ऐसा कहा, गिरे चरणों पे 


अति मीठे वचनों में भाई से, की प्रार्थना पुनः भरत ने 

श्यामवर्ण भाई को राम ने, बिठा लिया था तब गोद में