Friday, November 29, 2013

विश्वामित्र का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्व वृत्तांत बताना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकोनत्रिंशः सर्गः
विश्वामित्र का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्व वृत्तांत बताना और उन दोनों भाईयों के साथ अपने आश्रम पर पहुंचकर पूजित होना

वचन सुना जब श्रीराम का, अपरिमित बलवान जो थे
उत्तर देना किया प्रारम्भ, महातेजस्वी विश्वामित्र ने

देववंदित प्रभु विष्णु ने, यहाँ किया तप पूर्वकाल में
‘वामन’ का अवतार लिया जब, रहते थे इस आश्रम में

यहीं तपस्या में वे रत थे, यहीं प्राप्त की थी सिद्धि
सिद्धाश्रम कहलाया तब  ये, युग-युग तक तपस्या की

हुआ पराभव तब देवों का, बलि राजा विख्यात हुआ
इंद्र, मरुद्गण हुए पराजित, असुरराज ने यज्ञ किया

अग्नि आदि सब देवों ने, मिल विष्णु से ये वचन कहे
यज्ञ पूर्ण हो बलि का, इससे पूर्व कार्य सिद्ध हम कर लें

हर याचक की इच्छित वस्तु, यथारूप बलि अर्पित करते
वामन वेश बना आप भी, देवताओं का हित साधें

इसी समय अदिति के साथ, कश्यप मुनि वहाँ पधारे
 दीर्घ काल का व्रत पूर्ण कर, अग्निसम वे दीप्त हुए

वरदायक भगवान विष्णु की, सुंदर स्तुति की मुनि ने
तप राशि ! हे ज्ञान स्वरूप !, तप से आपके दर्शन मिलते

सारा जगत आपमें स्थित, हे अनादि ! मैं शरणागत हूँ
देश, कल से परे आप हैं, नहीं समर्थ जानने में हूँ

कश्यप जी निर्दोष हो चुके, श्रीहरि हुए प्रसन्न देख के
हो कल्याण तुम्हारा मुनिवर, हो योग्य तुम वर पाने के

वचन सुना जब प्रभु का सुंदर, मरीचि नन्दन कश्यप बोले
उत्तम व्रत पालक हे ईश्वर, एक याचना मेरे मन में  

अदिति सहित देवगण भी यह, वर आपसे यही मांगते
हे नारायण ! पुत्र रूप में, आप हमारे घर आयें  

Tuesday, November 26, 2013

श्रीराम का एक आश्रम एवं यज्ञ स्थान के विषय में मुनि से प्रश्न

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

अष्टाविंशः सर्गः



विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का एक आश्रम एवं यज्ञ स्थान के विषय में मुनि से प्रश्न 

रघुकुल नन्दन राम ने कहा, अभी आप जाएँ निज धाम
किन्तु जरूरत पड़े जिस समय, मनोस्थित हो जाएँ आप

तत्पश्चात परिक्रमा करके, अस्त्रों ने किया प्रस्थान
श्रीराम ने पूछा मुनि से, पाया जब अस्त्रों का ज्ञान

सम्मुख जो पर्वत दिखता है, सघन वृक्ष से ढका हुआ
मन में है उत्कंठा जागी, पशुओं से जो भरा हुआ

पक्षी गीत वहाँ गाते हैं, मनहर है यह सुंदर वन
मानो कठिन ताटका वन से, दूर निकल आए अब हम

कौन यहाँ रहता है प्रभुवर, यज्ञ हो रहा कहाँ आपका
कहाँ मुझे रक्षा करनी है, उस आश्रम का देश कौन सा

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अट्ठाईसवां सर्ग पूरा हुआ.



Tuesday, November 5, 2013

विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि बताना



श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

अष्टाविंशः सर्गः

विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का एक आश्रम एवं यज्ञ स्थान के विषय में मुनि से प्रश्न

ग्रहण किया जब अस्त्रों को, मुख राम का खिला ख़ुशी से
देवों से भी दुर्जय हूँ अब, चलते-चलते कहा मुनि से

कृपा आपकी मुझ पर है यह, ककुत्स्थ कुल तिलक राम बोले
महातपस्वी, धैर्यवान हे !, कहें विधि संहार की इनसे

उत्तम व्रतधारी मुनिवर ने, दिया उपदेश ‘संहार विधि’ का
अस्त्र विद्या के योग्य पात्र तुम, रघुवर ! हो कल्याण तुम्हारा

ग्रहण करो और अस्त्रों को, प्रजापति कृशाश्व के पुत्र हैं
इच्छाधारी, परम तेजस्वी, आगे इनके नाम कहे हैं

सत्यवान, सत्यकीर्ति, धृष्ट, रभस, प्रान्गमुख, प्रतिहारतर
लक्ष्य, अलक्ष्य, दृढ़नाभ, सुनाभ, द्शशीर्ष, दशाक्ष, शतवक्त्र

अवांग मुख, पद्मनाभ, महानाभ स्वनाभ, शकुन
हैं अद्भुत अस्त्र सभी ये, सर्पनाथ, पन्थान, वरुण

दुन्दुनाभ, ज्योतिष, निरस्य, विमल, दैत्य्नाश्क योगन्धर
शुचिबाहु, निष्कलि, विरुच, धृतिमाली, सौमनस, रुचिर

सर्चिमाली, पिव्य, विधूत, विनिन्द्र, मकर, परवीर, रति
धन, धान्य, कामरूप, मोह, आवरण, जुम्भ्क, कामरूचि

श्री राम ने पुलकित मन से, ग्रहण किया सभी अस्त्रों को
दिव्य तेज से उद्भासित थे, मूर्तिमान, सुखकारी थे जो

कुछ थे अंगारों से प्रज्ज्वलित, कितने ही धूम सम काले
सूर्य, चन्द्रमा के समान कुछ, सब सम्मुख थे श्री राम के

अंजलि बांधे मधुर स्वरों में, श्रीराम से वे ये बोले
पुरुष सिंह हम दास आपके, दे आज्ञा हम क्या सेवा दें