Sunday, January 3, 2021

भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

एकनवतितम: सर्ग: 

भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार 


इक्ष्वाकु कुल योद्धाओं की, सवारी में जो पशु लगे थे 

गन्ने के टुकड़े, मीठा लावा, सेवक उन्हें खिला रहे थे 


घुड़ सईस व हाथीवान को, निज वाहनों  का भान नहीं था 

सारी सेना प्रमत्त हुई थी, हर कोई आनंदमग्न था 


तृप्त हुए सैनिक आपस में, एक-दूसरे से कहते थे 

रहें भरत-राम कुशल से,  नहीं अयोध्या हम जायेंगे  


साथ भरत जो जन आये थे, हर्ष से फूले नहीं समाते 

कहने लगे यही स्वर्ग है, हँसते, गाते, नृत्य करते थे 


अमृत सम दिव्य भोजन करके, पुनः खाने की इच्छा जगती 

दासियाँ व स्त्रियां सैनिकों की, नूतन वस्त्र पहन हर्षित थीं 


हाथी, घोड़े, गदहे, ऊँट, बैल, मृग, सभी पक्षी तृप्त थे 

कोई भूखा, मलिन नहीं था, वस्त्र सभी के शुभ्र श्वेत थे 


अजवाइन मिला बनाये गए, वराही कन्द से बने थे 

आम आदि फलों के रसों में, पके हुए कई व्यंजन थे 


सुगन्ध युक्त रसवाली दालें, श्वेत भात से पात्र भरे थे  

आश्चर्य से भर सबने देखा, फूलों से जो सजे हुए थे 


वन के निकट जितने कुएँ थे, उनमें गाढ़ी खीर भरी थी 

गौएँ कामधेनु हो गयीं, पेड़ों से मधु वर्षा होती थी 


निषाद आदि निम्न वर्ग हित, मधु से भरी बावड़ियाँ प्रकटीं 

तपे हुए कुंड में पकाये, स्वच्छ मांस तटों पर सजे थे 


थे सहस्त्रों स्वर्ण के पात्र, व्यंजन पात्र भी लाखों में थे 

एक अरब थालियाँ रखी थीं, ढेरों व्यंजनों के संग्रह थे 

 

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