Monday, February 28, 2011

प्रभु, जीवन का राज खोल दो



प्रभु, जीवन का राज खोल दो


प्रभु, भीतर से द्वार खोल दो
सदियों से जो भटक रहे हैं,
उनके मन मंदिर में आकर
उजियाले की आस घोल दो !

यह जग अद्भुत भूल भुलैया
पग-पग पर संकट ने घेरा,
नहीं किसी को मिला मुक्कमल
रात कहीं तो कहीं सवेरा !

प्रभु, जीवन का राज खोल दो
जिसे खोजते आतुर प्राणी,
जिसको ढूँढ रही हैं ऑंखें
कहाँ हो तुम यह बात बोल दो !

बड़ी कठिन माया की माया
पार न कोई इसका पाया,
जोगी, जती, मुनि तक हारे
जप, तप चाहे लाख कमाया !

प्रभु, तुम्हारा नाम मोल दो
यह जग तुमसे ही चलता है
पर हम तुमको ढूँढ न पाए
जो अमोल है ज्ञान तोल दो !

अनिता निहालानी
२८ फरवरी २०११




Friday, February 25, 2011

कौन है वह


कौन है वह

रचे किसने अनंत ब्रह्मांड 
आकाशगंगाएँ, अनगिनत नक्षत्र, सौर मंडल
ग्रह, उपग्रह प्रकटे कहाँ से
इस असीम को कर ससीम
धारे जो भीतर
कौन है वह?

झांकता है कौन मन से
पुलक, चाह, हँसी, गति
क्यों छलके नयन से
कौन जिसको थपकियाँ देती हवा
लोरियाँ प्रकृति सुनाती
गीत गा गा खग जगाते  
कौन वह? किसके लिये
ये चाँद सूरज जगमगाते ?

अनिता निहालानी
२६ फरवरी २०११



नज्म

नज्म

आँखें हँसतीं रहीं लब मचलते रहे
नंगे पावों से राहों पे चलते रहे !

मेरी आहट पे खिलती बहारें हँसीं
फूल शाखों से राहों पे झरते रहे !

मीठी खुशबू मेरे खोये से गाँव की
जिसकी चाहत में आँसू पिघलते रहे !

मन जो रोशन हुआ जग भी रोशन हुआ
कदम बहके मगर फिर सम्भलते रहे !

अनिता निहालानी
२५ फरवरी २०११

Thursday, February 24, 2011

अपेक्षाएँ

अपेक्षाएँ

टूटती हैं अपेक्षाएँ
क्योंकि टूटना ही उनकी नियति है
टूटकर बिखर नहीं जाते क्या बूढ़े सितारे
टूटते हैं महल, टूटते हैं दिल !

पर कौन है ?
जो टूटते हुए देखता है सबकुछ
स्वयं अटूट बन,
रह निरपेक्ष !

घटना घटती है
पर उसका कुछ नहीं घटता
रत्ती भर भी नहीं
घटे भी किससे
और बढ़े भी किसमें ?

जब वही वह व्याप्त है
वहाँ कौन करेगा अपेक्षा
किससे करेगा ?
वहाँ जो है, वैसा ही प्रिय है
तो टूटती रहें अपेक्षाएँ !

अनिता निहालानी
२४ फरवरी २०११

Tuesday, February 22, 2011

अबदल

अबदल

अंतर अकुलाता नहीं अब
गीत उगाता नहीं
तकता है निर्निमेष
पल पल बदलते परिवेश को
भर उठता है कृतज्ञता से
कि वह है अबदल
ध्रुव तारे की तरह अटल !

अनिता निहालानी
२२ फरवरी २०११

Sunday, February 20, 2011

मंदिर और शिवाला

मंदिर और शिवाला

यह तन एक मंदिर है
और मन शिवाला है
इस तन-मन में आन बसा एक नटखट ग्वाला है !

जब से वह आया
तन को महकाया,
जगमग ज्योति से
मन को चमकाया

यह तन जो दीप बना
और मन उजाला है
 इस तन-मन में छुपा हुआ एक बांसुरी वाला है !

आनंद की वर्षा की
निज प्रेम दिया उसने,
अंतर्मन भिगो दिया
नेह किया जिसने

जो दूर बसा जा के
वह गोकुल वाला है
इस तन-मन में आन बसा एक बाल गोपाला है !

अनिता निहालानी
२० फरवरी २०११

Friday, February 18, 2011

जब भीतर छायी हो शांति की छाया





जब भीतर छायी हो शांति की छाया

जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में अभिनव एकांत है
ठहरा मन उपवन प्रशांत है !

न कोई उहापोह न शेष कोई चाह
हरियाले जंगल में जैसे कोई राह,
छल छल छलकें सोते मधुजल के
बरस बरस बादल कृपा नेह ढलके !

 जब भीतर छायी हो शांति की छाया
तो कुछ नहीं बिगाड़ पाती माया,
उस छाया में मौन मुखर उठता
कहीं वीणा तार कहीं मृदंग बजता !

अनुपम वह नाद अनोखा प्रकाश है
मिल जाये कोई जिसकी तलाश है,
ठहर ठहर श्वास कोई मंत्र हो गा रही
प्रकृति का हर रंग हर छटा लुभा रही !

अनिता निहालानी
१८ फरवरी २०११

Thursday, February 17, 2011

ऐसी हो अपनी पूजा

ऐसी हो अपनी पूजा


लक्ष्य परम, हो मन समर्पित
 हृदयासन पर वही प्रतिष्ठित !

शांतिवेदी, ज्ञानाग्नि ज्वलित
भावना लौ, प्रेम पुष्प अर्पित !

पुलक जगे अंतर, उर प्रकम्पित
सहज समाधि अश्रुधार अंकित !

छंटें कुहासे, करें ज्योति अर्जित
आनंद प्रसाद पा बीज स्फुटित !

मिले समाधान, लालसा खंडित
सुन-सुन धुन मन प्राण विस्मित !

अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
दृष्टा को दृश्य बना आत्मा शोभित !

अनिता निहालानी
१७ फरवरी २०११  


Monday, February 14, 2011

मन की दुनिया अजब निराली

मन की दुनिया अजब निराली

भीतर कितने भेद छिपाए
बाहर रूप बदल कर आये,
द्वन्द्वों का शिकार हुआ जो
मन हाँ पागल मन कहलाये !

मन मतवाला हुआ डोलता
 स्वयं ही स्वयं के राज खोलता,
कभी प्रीत के गीत सुनाये
वाणी व्रज सी कभी बोलता !

जाने कहाँ कहाँ की बातें
रचता खुद घातें-प्रतिघातें,
स्वयं आहत हो मरहम धरता
स्वयं से करता नई मुलाकातें !

मन की दुनिया अजब निराली
अनजानी भी देखीभाली
मन के पार न जाने देती
भूलभुलैया उलझन वाली !

अनिता निहालानी
१४ फरवरी २०११  

Thursday, February 10, 2011

हौलौ एन्ड एम्प्टी


हौलौ एन्ड एम्प्टी

आज सचमुच मन खाली है
तन भी बांसुरी सा पोला
बेरोकटोक श्वास भीतर जाती है
रग-रग को छूकर वापस आ जाती है
उस स्पर्श में कुछ घटता है
बेधड़क उसकी वापसी भी
विश्रांति की फसल बो आती है !

मन को भी छूती है
और खाली मन श्वास बन 
सँग सँग उतरता है,
हर मोड़, हर पडाव पर
पल भर ठहरता है
फिर उठ जाता है ऊपर
......और ऊपर
जहाँ उजाला ही उजाला है
निकल आती है कोई पुरानी पहचान
कोई कृष्ण बन जाता है
कोई राधा,
फूलों के सागर हैं, घंटनाद हैं
पंछियों का कलरव है
हमारा खाली मन कितना सुंदर है !

अनिता निहालानी
११ फरवरी २०११

Wednesday, February 9, 2011

कोटि नमन निज सु-मन, सुमति को


कोटि नमन निज सु-मन, सुमति को

नमन धरा को और गगन को
नमन नीर को और पवन को,
नमन सर्वदा पूत अगन को
कोटि नमन निज सुमन, सुमति को !

शत-शत नमन संत जनों को
ऋषियों, मुनियों की वाणी को,
नमन अनंत तुम्हें हो सदगुरु
जिसने नमन सिखाया हमको !

जिन पितरों के हुए वंशधर
 उनको शत-शत बार नमन,
मातृदेव भव, पितृदेव भव
उनसे ही पाया है जीवन !

नमन सूर्य को नमन धरा को
हो नमन सभी दिक्पालों को,
साक्षी हों सम्पूर्ण दिशाएं
सादर नमन परम ब्रह्म को !

अनिता निहालानी
९ फरवरी २०११      

Monday, February 7, 2011

मुक्ति की कामना

मुक्ति की कामना

किसे नहीं है कामना मुक्ति की
जड़ –चेतन सभी तो हैं
उस पथ के राही !

बंधें हैं, तोडना चाहते बंधन
एक-दूजे से दूर भागते नक्षत्र
फ़ैल रहा है ब्रह्माण्ड !

अनंत की चाह है आकाशगंगाओं को
भी उतनी ही, जितनी
एक मानवीय आत्मा को !

अनिता निहालानी
७ फरवरी २०११

Saturday, February 5, 2011

पावन गोपियों के प्रेम सम


पावन गोपियों के प्रेम सम

मन खाली है
क्या बोले !
मन खाली है
क्यों बोले !

हम जो न माटी थे न आकाश
उलझे रहे पंचभूतों के जाल में
शिकार हुए द्वन्द्वों के,
औरों को किया !

हम जो हैं शुद्ध, बुद्ध, निर्मल
सुखातीत, दुखातीत
धवल हिम शखिर से अमल
पावन गोपियों के प्रेम सम !

अनिता निहलानी
५ फरवरी २०११

Friday, February 4, 2011

नृत्य करती है आत्मा


नृत्य करती है आत्मा

कृष्ण की वंशी बजी
थिरक उठीं थी गोपियाँ,
तुम्हारे भीतर से फूटता है संगीत
तो नृत्य करती है आत्मा !

जब जगाया प्रज्ञा को
जड़ता से मुक्त किया
दिशाहीन सा था जो जीवन
दिशाबोध उसे दिया !

इधर-उधर बिखरा मन
समेटा, सहेजा, संवारा उसे
कण-कण में व्याप्त
चैतन्य से मिला निखारा उसे !

अनिता निहालानी
४ फरवरी २०११