Monday, September 10, 2012

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


एकादश सर्गः

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना


हे पुरुष सिंह ! आप स्वयं ही, सेना और सवारी लेकर
मुनिकुमार को लायें सादर, अंगदेश में फौरन जाकर

दशरथ हर्षित हुए वचन सुन, गुरु वशिष्ठ को भी बतलाया
रनिवास से रानियों को ले, मंत्रियों सहित प्रस्थान किया

वन, नदियों को पार किया, अंगदेश जा पहुंचे सब वे
प्रज्ज्वलित अग्नि के समान, ऋष्यश्रंग को देखा बैठे

मित्र के नाते रोमपाद ने, विशेष रूप से पूजन किया
ऋषि कुमार को भी बतलाया, उन्होंने भी सम्मान किया

सात-आठ दिन रहे वहाँ वे, अंगराज से तब बोले
पति के संग तुम्हारी पुत्री, करे पदार्पण मेरे नगर में

एक महान आवश्यक कार्य है, ऋषि ही सम्पन्न कर सकते
रोमपाद ने हामी भर दी, सहर्ष वे दोनों जा सकते

ऋषिपुत्र भी मान गए जब, ली विदा दोनों मित्रों ने
हाथ जोड़कर, लग छाती से, अभिनन्दन किया दोनों ने

भेजे दूत नगर में अपने, कहलाया पुरवासियों को
फैले सर्वत्र धूप सुगंधि, सज्जित करें समस्त नगर को

झाड़-बुहार नगर की सडकें, पानी का छिडकाव करें
हो अलंकृत नगर सारा, ध्वजा-पताकाए लहरें

पुरवासी हुए अति प्रसन्न, राजा का आगमन सुनकर
पालन किया पूर्ण रूप से, उनका शुभ संदेशा पाकर

शंख और दुदुंभी आदि, वाद्यों की ध्वनि गुंजाये
ऋषिपुत्र को आगे करके, सजे सजाये नगर में आए

द्विजकुमार का दर्शन करके, नगर निवासी हुए प्रसन्न
इंद्र समान दशरथ के साथ, ऋषि पुत्र जैसे थे वामन

अंतः पुर में ले गए उनको, शास्त्रविधि से किया आदर
कृत-कृत्य माना स्वयं को, ऋषि को निज निकट पाकर

विशाल लोचना शांता को पा, रानियाँ भी हुईं हर्षित
कुछ काल तक रही पति संग, शांता भी हो उनसे पूजित

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में ग्यारहवां सर्ग पूरा हुआ.


Friday, September 7, 2012

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


की अगवानी तब राजा ने, बहुत विनय के साथ ऋषि की
साष्टांग प्रणाम किया तब, मस्तक टेक के फिर विनती की

आप पिता के संग प्रसन्न हों, कृपा का प्रसाद मुझे दें
क्रोधित न हों ऋषि जानकर, अंतः पुर में उन्हें ले गए

शांतचित्त से विधिपूर्वक, ब्याह किया शांता का उनसे
ऋश्यश्रंग हो पूजित उनसे, पत्नी के संग वहीं रह गए

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में दसवाँ सर्ग पूरा हुआ

एकादश सर्गः

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना

तब सुमन्त्र ने कहा नरेश से, हित की बात सुनें मुझसे
ऋषियों से जिसे कहा था, श्रेष्ठ देवों में सनत्कुमार ने

कहा उन्होंने इक्ष्वाकुवंश में, दशरथ नामके राजा होंगे
उनकी बड़ी मित्रता होगी, अंगदेश के इक राजा से

रोमपाद नाम है उसका, शांता नामक पुत्री होगी
ऋष्यश्रंग आ यज्ञ करा दें, दशरथ उनसे करेंगे विनती

वंश चलेगा जिससे मेरा, पुत्र प्राप्ति होगी मुझको
मन ही मन करके विचार तब, संग भेज देंगे ऋषि को

चिन्ता दूर होगी राजा की, यज्ञ का अनुष्ठान करेंगे
द्विजश्रेष्ठ मुनि का तब वे, पुत्र, स्वर्ग हित वरण करेंगे

चार पुत्र होंगे राजा के, विख्यात व बड़े पराक्रमी
अप्रमेय, बड़े प्रतापी, जिनसे वंश मर्यादा बढ़ेगी 

Tuesday, September 4, 2012

दशमः सर्गः अंगदेश में ऋष्यश्रंग के आने तथा शांता के साथ विवाह होने का प्रसंग कुछ विस्तार के साथ वर्णन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


दशमः सर्गः
अंगदेश में ऋष्यश्रंग के आने तथा शांता के साथ विवाह होने का प्रसंग कुछ विस्तार के साथ वर्णन


उनका रसास्वादन करके, समझा फल ही उन्हें ऋषि ने
वनवासी थे वे बचपन से, मिष्ठान कभी नहीं चखे थे

पिता विभाण्डक के भय से फिर, व्रत आदि की बात बना कर
चली गयीं वे वनिताएँ तब, ऋषि हुए व्याकुल जाने पर

दुःख से इधर-उधर टहलते, दूजे दिन भी वहीं आ गए
जहाँ मिलीं थीं वे स्त्रियां, जिनके वस्त्र-आभूषण भा गए

हृदय खिल उठा उन्हें देख कर, बोलीं देख ऋषि को आते
है आश्रम हमारा भी सुंदर, सौम्य ! चलो तुम सँग हमारे

कंद-मूल फल-फूल का संग्रह, नाना रंग रूप यहाँ मिलता
लेकिन वहाँ निश्चय ही इनका, विशेष प्रबंध किया जा सकता

उनके मनहर वचन सुने जब, जाने को तैयार हुए वे
निज सँग फिर ले गयीं स्त्रियाँ, आदर से उन्हें अंगदेश में

उनके आते ही देश में, इंद्रदेव ने जल बरसाया
सारा जग प्रसन्न हुआ तब, राजा भी था अति हर्षाया