Friday, December 31, 2010

भावान्जली

जिसको मैंने था प्यार किया
पाया जग में, कुछ नहीं मिला,
रह जाये सब का सभी यहीं
जो अनचाहा है वही दिला !

जीवन की बाती बुझने को
हंसके दो विदा अब न रोको
अधिकार से ज्यादा पाया है
लौटा दूँ खुशी से न टोको !

पथ बीहड़ हो या अति दुर्गम
थम जाएँ न कदमों के स्वर,
व्याकुल अंतर में प्यास लिये
बढ़ते जाना है डगर डगर !

Wednesday, December 29, 2010

भावांजलि

जीवन के प्याले ने बांटा
कितना रस कितना मधु हमको
प्रेम उजाला, प्रेम सुधा भर
निहारती है मृत्यु देखो !

कुछ खोने कुछ पाने के क्षण
पल-पल जीवन चुकता है
आशा और निराशा के क्षण
लिये अंत को चलता है !

मृत्यु का आंचल कितना मोहक
एक दृष्टि में अपनाएगी
जीवन खेले आंखमिचौली
यह पल में गले लगायेगी !

Tuesday, December 28, 2010

भावांजलि

जो मिला जितना मिला पर्याप्त है मेरे लिये,
तू यहीं मेरे निकट
मैं हूँ सदा तेरे लिये !

कितने आँसूं रोया यह दिल
सिसकी कितनी गुम गयी भीतर,
सी लिये अधर इस तरह यहाँ
यह आह ! सुन सके कोई गर !

कही अनकही दिल की बातें
गीतों में चुपचाप पिरोया,
रचा बसा अंतर में जो था
भाव सुधा में उसे डुबोया !

Monday, December 27, 2010

भावांजलि

तुमने जो प्रेम सुधा सौंपी
रच बस गयी मेरे कण-कण में,
उस प्रीत माधुरी को पीने
तुम आये हो मेरे मन में !

अंतर्मन में है गूंज रहा
एक राग मधुर बन कर गुंजन,
उस स्वरलहरी को सुनने ही
आये हो तुम बनकर धड़कन !

नयनों में छवि इस सृष्टि की
जो प्रेम तत्व से रची गयी
उस दृश्य अनोखे को लखने
तुम आये हो मेरे उर में !

जो छिपा रहा जग आँखों से
जो व्यक्त कभी न हो पाया,
वह गीत मधुर, रसमय तुमको
अर्पित है आज, प्रभु मेरे !

Friday, December 24, 2010

भावांजलि

रंग भरा यह जग सारा है
बादल रंगीं, पंछी रंगीं
जल में सूर्य रंग बरसाता,
रंग हमें आनन्दित करते !

नन्हें बालक मुग्ध खेलते
निरख निरख प्रभु हर्षित होता !
लहरें तरल स्वर बिखरातीं
सर-सर-सर-सर गीत सुनाते,
पत्ते वन-वन डोला करते
जैसे लोरी शिशु हों सुनते !

तुमसे मिलकर मिटी दूरियाँ
अपने हो गए सभी पराये,
अनजाने जाने से लगते
परिचय तुमने दिये कराए !
हो तुम जन्मों के चिर-परिचित
जीवन में तुम ! तुम्हीं मरण में,
दूरस्थ निकट तुम ला देते
स्वयं प्रतिपल साथ रहे मेरे !

Wednesday, December 22, 2010

भावांजलि

यह भव सागर, तट पर जिसके
इक भारी मेला लगा हुआ,
ऊपर नीला आकाश तना
नीचे लहरों का खेल चला !
नाविक निकले बैठ नाव पर
मोती, माणिक, मूंगा पाने,
नन्हें बालक खेलें तट पर
अविरत खेल कौन सा जाने ?

शिशु की मुंदी हुई पलकों पर
चंदा की चाँदनी छायी,
दूर देश में परी लोक है
नींद शिशु की वहीं से आयी !
नाजुक अधरों की मुस्कानें
शरदकाल में जन्मी होंगी,
कोमल रेशमी काया तन की
माँ की रूप माधुरी लायी !

अनिता निहालानी
२२ दिसंबर २०१०

Tuesday, December 21, 2010

भावांजलि

गीतों के शब्दों में घुलमिल
सुख की धार पिघल जाये,
धरती हँसती, हँसता अम्बर
स्वर भीतर के हँस बह जाएँ !
गरजें बादल तो लगे हँसे
विद्युत भी चमके मुस्काए,
आनंद भरे कण - कण में अब
पीड़ा में भी हम हरषाएं !
जीवन तो सुख का स्रोत बने
मृत्यु भी हमें हँसा जाये !

ओ चितचोर ! प्रभु मेरे
डोल रही है गूंज प्रेम की
छन पत्तों से आये उजाला ,
 मेघ उड़ें नभ में अलसाये
बहता समीर तन सहलाए,
दे रहे गवाही मिल ये सब
ओ चितचोर ! मुझे बतलायें
तुम मुझसे मिलने नित आते
मन मेरा लख झुक झुक जाये !

Monday, December 20, 2010

भावांजलि

तुमसे यदि मेरा सुख, हे प्रभु !
तुम भी तो मुझसे हर्षाते,
होता न यदि अपना कोई
बोलो किस पर तुम प्रेम लुटाते ?
तुम जो क्रीडा रचा रहे हो
मैं भी तो हूँ साक्षी उसका !
बन प्रकाश दिल में आ जाते
नित बनता मैं भागी जिसका,
सृष्टि का यह अद्भुत मेला
तुमने मेरे लिये रचा है,
ओ राजाओं के राजा ! यह
प्रेम तुम्हारा मुझमें बसा है.

तुम बन कर ज्योति आये हो
भीतर – बाहर तुम छाए हो,
नृत्य कर रही अनुपम दृष्टि
हुई मुदित है सारी सृष्टि,
डूब गया है कण-कण जिसमें
ज्योति नदी झर-झर धारा में !

Friday, December 17, 2010

भावांजलि

निर्मल जल की धार बहायी
अंजलि भर भर तुमने पायी,
मर्मर स्वर सँग पत्ते कांपे
कोकिल की दी कूक सुनाई,
तुमने जब पूछा परिचय था
झुमा पुष्प सुखद मतवाला,
मधु स्मृति बन अंकित वह पल
उसी तरह प्रतीक्षित बाला !

समय का पंछी उड़ता जाये
जाग ! अरे, ओ जाग यात्री !
मन के भीतर अंधकार क्यों
ज्योति युक्त हर बने रात्रि !

अनिता निहालानी
१८ दिसंबर २०१०

भावांजलि

प्रीत में मिटकर जीवन पाया
मृत्यु को निज दास बनाया,
प्रियतम ने कुछ भेद बताए
जीवन उत्सव सहज बनाया !

न माँगा न कुछ दिया परिचय
बस मौन में ही सब कह डाला,
पथिक प्यासा वह बन आया
रह गयी चकित पनघट बाला !

Thursday, December 16, 2010

भावांजलि

आहट जब कदमों की आयी,
झोंका पवन का होगा, माना
तुमने जब पुकार लगाई,
हुआ नींद में भ्रम था जाना !
हे प्रभु ! लौट गए जब तुम
पड़ा था कितना पछताना,
चौंक गयी मैं, पुनः आये तुम
स्वागत का न किया ठिकाना,
फटेहाल, सूने आंगन में
तुम्हें पड़ा था बैठाना !



प्रेम राह में मिटना होगा
फूलों की यह डगर नहीं है
तलवारों पर चलना होगा
बस मधुमय यह सफर नहीं है !

Tuesday, December 14, 2010

भावांजलि

तुमने भर दी खाली झोली
कुछ भी न, मैंने तुम्हें दिया,
तुम दाता ! ऐसे हो औघड़
मैंने कुछ देकर बचा लिया,
क्यों न सब दे पायी मैं
जब आये तुम मेरे द्वारे,
तुमने प्रेम अपार बहाया
न देखा  कृपण हृदय को मेरे !

मैंने दिया निमंत्रण तुमको
मेरे हृदय सदन में आना,
पर तुम आये तब थी बेसुध
वह आना मैंने न जाना,
तुमने भेजे दूत, उन्हें भी
लौटा दिया नहीं पहचाना !

Monday, December 13, 2010

भावांजलि

उस दिन स्वप्न से जैसे जगकर
हुआ चकित मन तुमसे मिलकर !
ज्यों ही झलक मिली मूरत की
टूटी जन्मों की बेहोशी !
मुस्कान तुम्हारी मोहित कर
मेरी सुधबुध ले गयी हर !

बरसायी अकारण करुणा तुमने,
ओ स्वामी करुणा वरुणालय !
दिया अहैतुक प्रेम तुम्हीं ने
प्रेमसरोवर ! ओ प्रेमालय!

Friday, December 10, 2010

भावांजलि

आयी दोपहरिया, तप्त धरा
चढ़ आया सूरज मध्य गगन,
चरवाहे भी थक कर सोये
वटवृक्ष छांह सहलाये पवन !
उसके आने की हुई आहट,
मैंने भी सुनी वंशी की धुन !

धरती का कोमलतम स्पर्श
है माँ की गोद सा प्रिय मुझे !
वृक्षों की छाया का कौतुक,
मदमस्त, सुगन्धित आम्रबौर
भौरों की गुंजन मन भायी
प्रकृति के रूप सभी सुखकर !

Thursday, December 9, 2010

भावांजलि

बीती रात्रि प्रतीक्षा में
तुम कहाँ रहे प्रियतम मेरे
है सुंदर प्रभात का उत्सव
उनींदे नयन हैं मेरे !

टूटे मेरी नींद युगों की
मेरी पलकें तभी खुलें,
सम्मुख हो मुखड़ा उसका
उस ज्योति से चैतन्य मिले !

हम चला करें अपनी धुन में
खोये रहते निज उलझन में
होता प्रभात, पंछी गाते !
नदिया बहती, जंगल हँसते
उड़ते बादल, उपवन खिलते !
पर हम न जाने किस दुःख को
भर उर में गीत नहीं गाते,
न मुस्काते !
वह हमें बुलाता है हर पल,
उसकी पुकार भी पत्थर दिल
हम, सुनी अनसुनी कर जाते!

Wednesday, December 8, 2010

भावांजलि

युग-युग से तुम आते हो,
प्रतिदिन, प्रतिक्षण निज आहट से
उर आंगन को गुंजाते हो !
सुखमय दिवस, रात्रि दुखमय
स्पर्श तुम्हारा ही सहलाये,
चहुँ ओर संगीत तुम्हारा
गूंजे नित संदेशा लाए !

आज ही वह आने वाला है !
कोई कहकर गया कान में,
मीत वही, कह रही सुगंध
डोलें पात-पात पवन सँग
ऑंखें भी प्रतीक्षा में रत !

Tuesday, December 7, 2010

भावांजलि

कब चुपके से आकर मन में
तुमने अपना किया बसेरा,
कितनी सुंदर स्मृतियों से
अपनी पहचानों को उकेरा !
छोटे छोटे जग सपनों सँग
होकर एक रस छिपी हुई थी,
उस सुस्मृति को आज टटोला
सुख-दुःख सँग जो घुलीमिली थी !
आज पुनः आगमन तुम्हारा
देखो उस पर ध्यान न देना,
मधुर मिलन की याद तुम्हारी
सदा ह्रदय में रहने देना !


है मधुर विरह की यह पीड़ा
प्रतीक्षा में आनंद छुपाये,
तुमसे मिलने की प्रत्याशा
आतुर अंतर पलक बिछाये !

Monday, December 6, 2010

भावांजलि

तुम युग युग से बाट जोहते
पुष्पों हारों से ढके हुए,
तुमको चाहे कोई ऐसा हो
सब इच्छाओं से भरे हुए !

तुमसे बस तुमको ही माँगूं
मैं दीन, लिये आतुर अंतर,
पर कैसे उर की कहूँ व्यथा
अनगिन दोषों से भरा भीतर !


इस जग में आने का हेतु
अब पूर्ण हुआ, तुम आओगे !
अपने उस दिव्य लोक में
कब, सँग मुझे ले जाओगे ?

Saturday, December 4, 2010

भावांजलि

रूखा-सूखा था यह जीवन
मरुथल में तुम जल बन आये !
कर्मों के बंधन में जकड़े,
अंतर्मन में मुक्ति लाए !
दीन-हीन मन कृपण बना जब
हे दयालु ! तुम कृपा बहाते,
धूल कामना की न ढक ले
ज्ञान ज्योति उर में जलाते !



मरुथल सा उर, पाहन सा मन
बरसो गहन ! रसधार बहा दो
वज्रनाद कर तड़ित ज्वाल बन
झंझावात से दिल दहला दो !

Wednesday, December 1, 2010

bhavanjali

जो होना था हो चुका यहाँ,
पाना था जो, पाया हमने !
थमे कदम, पा मंजिल का भ्रम
चुक गयी शक्ति, ढहा सब श्रम !
किन्तु, आज यह भान हुआ है
है अंतहीन क्रम जीवन का,
नित नयी सुबह, हर रात नयी
नहीं अंत कहीं इस पथ का !

तुम एक सत्य जीवन धन हो
जग में हर ओर छलावा है,
चुपचाप प्रेम किये जाऊं
जीना तो एक भुलावा है !
प्रीत की डोर बंधी तुमसे
जीवन का यही सम्बल है
दिल में दीप प्रेम का जलता
वही पथिक का पाथेय जल है !