Tuesday, February 19, 2013

ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानर यूथ पतियों की उत्पत्ति



श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


सप्तदशः सर्गः

ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानर यूथ पतियों की उत्पत्ति 


सुंदर, रूपवान जो दोनों, अश्विनीकुमार नाम है जिनका
दो पुत्रों के पिता बने, मैंद, द्विविद नाम था उनका

वरुण पुत्र कहाया सुषेण, वायु थे हनुमान के पिता
गरुड़ समान वेग पाया, वज्र समान सुदृढ़ शरीर था

बुद्धिमान व बलशाली थे, सभी श्रेष्ठ वानरों में वे
कई हजार वानर उपजे थे, वध करने को रावण के

बल की सीमा नहीं थी उनके, इच्छानुसार रूपधारी थे
गजराजों, पर्वतों समान वे, वीर, पराक्रमी, महाबली थे

वानर, रीछ, लंगूर भी जन्मे, थे पराक्रमी देवावस्था से
जिस देव का रूप था जैसा, उसी समान पुत्र था उससे

कुछ की माता रीछ जाति की, कुछ किन्नरियों से जन्मे थे
देव, महर्षि, गरुड़, गन्धर्व ने, पुत्र अनेकों तब जन्मे थे

सर्प, नाग, सिद्ध, विद्याधर, यक्ष आदि भी हुए थे हर्षित
देव स्तुति करने वाले जो, वनवासी भी हुए प्रफ्फुलित

कंदमूल फल खाने वाले, सिंह, व्याघ्र सम थे बलशाली
चट्टानों को उठा हाथ में, इच्छा मात्र से विचरण शाली

अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता, लेते, नख, दांतों से काम अस्त्र का  
पर्वत हिला सकें हाथों से, क्षुब्ध कर सकें जल सागर का

लाँघ सकें सागरों को भी, पृथ्वी को विदीर्ण कर डालें
चाहे तो आकाश में जाएँ, गजराजों को बंदी बना लें

घोर शब्द मात्र से उनके, पक्षी गगन से गिर जाते थे
महाकाय वानर बलशाली, कोटि संख्या में यूथपति थे

यूथपति से श्रेष्ठ जो वानर, ऋक्षवान पर्वत पर रहते
दूजे अन्य वनों के वासी, कई पर्वतों पर थे बसते

इंद्रकुमार बाली के भाई, थे सूर्यकुमार सुग्रीव कहाते
वानर यूथपति सब मिलकर, सेवा में उनकी रहते थे

नल-नील, हनुमान व अन्य, वानर अति महाकाय थे
सहायता हेतु श्रीराम की, सारी पृथ्वी पर छा गए थे  

 




Saturday, February 16, 2013

ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानर यूथ पतियों की उत्पत्ति


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 



सप्तदशः सर्गः

ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानर यूथ पतियों की उत्पत्ति

श्री विष्णु देव प्राप्त हुए, पुत्र भाव को जब राजा के
कहे सभी देवों को ये, दिव्य वचन तब ब्रह्मदेव ने

सत्य प्रतिज्ञ, वीर हैं विष्णु, तुम सहायक बनो उन्हीं के
सृष्टि करो ऐसे पुत्रों की, हों नीतिज्ञ व धारक बल के

इच्छानुसार रूप धरते हों, माया को जानने वाले
वेगवान वायु समान हों, नहीं परास्त होने वाले

बुद्धिमान, पराक्रमी भी, दिव्य देहधारी देवों सम
अमृत भोजी, युक्तिवान भी, अस्त्र विद्या में हो सम्पन्न

मुख्य-मुख्य अप्सराएँ हों, या गन्धर्व व नाग कन्याएं
विद्या धरियाँ, किन्नरियाँ, वानरियां भी बनें सहाय

वानर रूप में जन्मो पुत्र, जो तुम से ही हों पराक्रमी
मैंने सृष्टि की, जम्भाई से, ऋक्षराज जाम्बवान की

ब्रह्मा के ऐसा कहने पर, स्वीकारी आज्ञा उनकी
बलशाली अनेक पुत्रों की, वानर रूप में सृष्टि की

ऋषि, महात्मा, सिद्ध, नाग ने, विद्याधर और चारण भी
जन्म दिया वीर पुत्रों को, वानर व भालुओं रूपी

देवराज का पुत्र था बाली, पर्वत सा महा बलिष्ठ था
तपस्वियों में श्रेष्ठ सूर्य ने, सुग्रीव को जन्म दिया

महाकाय तार वानर था, पुत्र महान बृहस्पति का
गंधमादन कुबेर पुत्र श्रेष्ठ, नल विश्वकर्मा का था

अग्नि के समान नील था, अग्निदेव का पुत्र प्रिय
तेज, बल, और यश में आगे, पिता शरभ का पर्जन्य