Friday, August 23, 2013

विश्वामित्रजी का ताटका वध के लिए प्रेरित करना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


पंचविंशः सर्गः

श्रीराम के पूछने पर विश्वामित्रजी का उनसे ताटका की उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदि का प्रसंग सुनाकर उन्हें ताटका वध के लिए प्रेरित करना

अपरिमित प्रभावशाली जो, विश्वामित्र का कथन सुना जब
पुरुष सिंह श्रीरामचन्द्र ने, अति शुभ यह वचन कहा तब

मुनिश्रेष्ठ, जब अबला है वह, उसका बल थोड़ा ही होगा
एक हजार हाथियों का बल, कैसे उसमें सम्भव होगा

अमित तेजस्वी रघुनाथ के, कहे हुए इस वचन को सुनकर
 राम, लक्ष्मण को हर्षित कर, कहे मुनि ने वचन मधुर

सत्य कहा, वह अबला ही थी, वर पाकर वह सबल हुई है
किस कारण वर पाया उसने, सुनो कथा जो मैंने कही है

पूर्वकाल की बात है यह, था एक महान यक्ष सुकेतु
बड़ा पराक्रमी, सदाचारी भी, की तपस्या पुत्र के हेतु

ब्रह्माजी प्रसन्न हुए पर, कन्या रत्न का दान किया
एक हजार हाथियों का बल, उन्होंने ही प्रदान किया

बढ़ने लगी यक्ष बालिका, रूपवती यौवन पाया
जम्भू पुत्र सुन्द से तब, पिता ने उसका ब्याह रचाया

कुछ काल के बाद उसे, दुर्जय पुत्र मारीच हुआ
दे शाप अगस्त्य मुनि ने, राक्षस उसको बना दिया

 मुनि द्वारा पति सुन्द भी, मारा गया था शापित होकर
मुनिवर को मारने हेतु, पुत्र सहित थी ताटका तत्पर

कुपित हुई दौड़ी गरजती, मुनि को खा जाने के हेतु
मारीच को शाप दिया तब, देव योनि से निष्कासन हेतु

फिर अत्यंत अमर्ष में भरकर, शाप दिया ताटका को भी
तू है वैसे महा यक्षिणी, नरभक्षण कर बन राक्षसी

इस प्रकार शाप मिलने से, क्रोधित हो उठी ताटका
 सुंदर वन को दिया उजाड़, जहाँ मुनिवर का निवास था

वध कर डालो इस राक्षसी का, गौओं व ब्राह्मणों के हित
कोई नहीं समर्थ है इसमें, करो रघुकुल को आनन्दित

नहीं दिखाओ करुणा इस पर, राजपुत्र का धर्म यही है
चारों वर्णों का यदि हित हो, स्त्री वध भी तब उचित है

प्रजापालक नरेश प्रजाहित, दोषयुक्त कर्म भी करते
क्रूरकर्म में भी यदि उनको, होना हो रत नहीं वे रुकते

राज्य भार हो जिनके ऊपर, उनका तो यह धर्म सनातन  
महापापिनी है ताटका, वध उचित है धर्मविहीन

पूर्वकाल में हुई मंथरा, थी विरोचन की जो पुत्री
इंद्र ने वध किया उसका, थी पृथ्वी नाश की इच्छा उसकी

शुक्राचार्य की माता थी जो, भृगु की पतिव्रता पत्नी थी
विष्णु ने वध किया था उसका, जग इंद्र शून्य करना चाहती थी

इसी तरह अन्यों ने भी, किया दुष्ट स्त्रियों का वध
दया या नफरत को त्याग कर, कर डालो ताटका का वध

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पच्चीसवां सर्ग पूरा हुआ.





Wednesday, August 7, 2013

ताटका वन का परिचय देते हुए इन्हें ताटका वध के लिए आज्ञा प्रदान करना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

चतुर्विंशः सर्गः


श्रीराम और लक्ष्मण का गंगा पार होते समय विश्वामित्र से जल में उठती हुई तुमुल ध्वनि के विषय में प्रश्न करना, विश्वामित्रजी का उन्हें इसका कारण बताना तथा मलद, करुष एवं ताटका वन का परिचय देते हुए इन्हें ताटका वध के लिए आज्ञा प्रदान करना

तदन्तर निर्मल प्रभात में, नित्यकर्म से निवृत्त होकर
विश्वामित्र को आगे करके, दोनों भाई आये तट पर 

उत्तम व्रत धारी मुनियों ने, सुंदर नाव एक मंगवाई
विश्वामित्र से कहे वचन तब, राजपुत्रों संग हो उतराई

बैठ गये वे सब नाव में, सिन्धु गामिनी गंगा में तब
तुमुल ध्वनि सुनी थी सबने, आये नदी के मध्य में जब

श्रीराम ने पूछा कारण, उत्कंठा थी उनके स्वर में
विश्वामित्र ने कहे वचन, ये ध्वनि है जल के टकराने से

कैलाश पर्वत पर स्थित, एक सरोवर है अति सुंदर
ब्रह्मा जी के मन से उपजा, कहलाता है मानसरोवर

उससे एक नदी निकली है, अवध से सटकर जो बहती
पावन नदी कहाए सरयू, ब्रह्मसर से है निकली

उसका जल गंगा में मिलता, जिससे यह आवाज हो रही
करो प्रणाम संगम के जल को, तुलना नहीं है इसकी कोई

कर प्रणाम फिर दोनों भाई, उतरे गंगा के दक्षिण तट पर
जल्दी-जल्दी लगे वे बढ़ने, सम्मुख वन को एक देखकर

बड़ा भयंकर वन था जिसमें, मानव का प्रवेश नहीं था
 अति अद्भुत, दुर्गम था भारी, हिंसक पशुओं से भरा हुआ

झिल्लियों की झंकार भरी थी, पक्षी बोलें भीषण स्वर में
क्या नाम है इस जंगल का,  मुनिवर से पूछा राम ने

महा तेजस्वी, महामुनि ने, कहा, सुनो, कहता मैं परिचय
जिसके ये अधिकार में था, पूर्वकाल में कौन थे वे

मलद और करुष नामके, दो जनपद समृद्धिशाली थे
देवों के प्रयत्न से निर्मित, वे दोनों देश अति सुंदर थे

वृत्रासुर का वध करने से, इंद्र हुए थे मल से लिप्त
पीड़ित किया क्षुधा ने उनको, ब्रह्म हत्या से भी तप्त

ऋषियों देवों ने नहलाया, गंगाजल कलशों में भरकर
मल व कारुष छूट गये तब, इंद्र हुए निर्मल, निष्करुष

हो प्रसन्न इंद्र ने तब यह, वर दे डाला इस प्रदेश को
होंगे सम्पन्न तथा सुखी, मलद, करुष ये जनपद दो

आई कुछ काल के बाद, एक यक्षिणी इच्छाधारी
एक हजार हाथियों का बल, निज तन में धारण करती  

सुन्द दैत्य की पत्नी है वह, उसका नाम ताटका है
है बलवान इंद्र समान जो, मारीच पुत्र उसी का है

बड़ा भयानक रूप है उसका, सदा प्रजा को देता कष्ट
दुःख देती ताटका भी है, दोनों जनपद उससे त्रस्त

डेढ़ योजन तक मार्ग को, घेर के रहती है यक्षिणी
राम तुम्हारे बाहूबल से, पाए मृत्यु वह दुराचारिणी

पुनः बने भूमि निष्कंटक, सबके लिए हो सुगम प्रयाण
उसने इसे उजाड़ दिया है, तभी है सूना यह स्थान


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौबीसवां सर्ग पूरा हुआ.