Tuesday, January 2, 2024

वृद्ध कुलपतिसहित बहुत से ऋषियों का चित्रकूट छोड़कर दूसरे आश्रम में जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

षोडशाधिकशततम: सर्ग:


वृद्ध कुलपतिसहित बहुत से ऋषियों का चित्रकूट छोड़कर दूसरे आश्रम में जाना 

 

पापजनक अपवित्र द्रव्य से, तपस्वियों का स्पर्श कराके 

ऋषियों को घनी पीड़ा  देते, आश्रमों में रहते छिप के 


असावधान तपस्वियों का फिर, कर विनाश वहाँ बस जाते 

यज्ञ सामग्री बिखरा देते, घट फोड़, अग्नि बुझा देते  


दुरात्मा उन राक्षसों के भय से, त्याग आश्रमों को ऋषिगण 

अन्य स्थान में जाना चाहें, करूँ में इनका पथ प्रदर्शन 


 शारीरिक हानि पहुँचायें, इससे पूर्व ही हम जाएँगे 

अश्व मुनि का आश्रम निकट है, उसी में हम निवास करेंगे 


खर करेगा अनुचित बर्ताव, आपके प्रति भी हे श्री राम 

उससे पूर्व आप यदि चाहें, साथ हमारे करें प्रस्थान 


यद्यपि आप सदा सावधान, राक्षसों के दमन में समर्थ 

किंतु सीता सहित यहाँ रहना, संदेह जनक व दुख दायक 


थे अन्यत्र जाने को उत्सुक, रोक नहीं सके राम उन्हें 

अभिनंदन करके उन्होंने,  किया प्रस्थान साथ समूह के 


पीछे जाकर विदा दी उनको, प्रणाम किया कुलपति को भी

 सुन उपदेश लौट आये आश्रम, राम अनुमति लेकर उनकी


ऋषियों से जो रिक्त हुआ था, उस आश्रम को नहीं त्यागा 

ऋषि समान जीवन था राम का, रक्षा का सामर्थ्य भरा था 


 दृढ़ विश्वास जिन्हें ऐसा था, उन ऋषियों ने किया अनुसरण 

जिन्हें भरोसा था राम पर , नहीं गये वे दूसरे आश्रम 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में 

एक सौ सोलहवाँ सर्ग पूरा हुआ.