Wednesday, March 30, 2011

चलो उगा दें चाँद प्रीत का

चलो उगा दें चाँद प्रीत का


चलो झटक दें हर उस दुःख को
जो तुमसे मिलने में बाधक,
 चाहो तो तुम्हें अर्पण कर दें
बन जाएँ अर्जुन से साधक !

चलो उगा दें चाँद प्रीत का
तुमसे ही जो करे प्रतिस्पर्धा
चाहो तो अंजुरी भर भर दें
भीतर उमग रही जो श्रद्धा !

चलो गिरा दें सभी आवरण
गोपी से हो जाएँ खाली
उर के भेद सब ही खोल दें
रास रचाएं संग वनमाली  !

फिर उपजेगा मौन अनोखा
जिससे कम की मांग व्यर्थ है
प्रश्न सभी खो जायेंगे तब
आत्म मिलन का यही अर्थ है !

क्रांति घटेगी उगेगा सूरज
भीतर सोया जब जागेगा,
परम खींचता हर पल सबको
आत्म क्षितिज तब रंग जायेगा !

अनिता निहालानी
३० मार्च २०११

Sunday, March 27, 2011

अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं

अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं


जो न छंद बद्ध हुए
बिल्कुल कुंआरे हैं
तिरते अभी नभ में   
गीत बड़े प्यारे हैं !

जो न अभी हुए मुखर
अर्थ क्या धारे हैं
ले चलें जाने किधर
 पार सिंधु उतारे हैं !

पानियों में संवरते
पी रहे गंध माटी
जी रहे ताप सहते
मौन रूप धारे हैं !

गीत गाँव की व्यथा के
भूली सी इक कथा के
गूंजते से, गुनगुनाते
अंतर संवारे हैं !

गीत जो हृदय छू लें
पल में उर पीर कहें
ले चलें अपने परों  
उस लोक से पुकारें हैं !

अनिता निहालानी
२७ मार्च २०११
 

Thursday, March 24, 2011

खुद से भी तो मिलना सीखो



खुद से भी तो मिलना सीखो


सद् गुरु कहते ‘हँसो हँसाओ’
खुद से भी तो मिलना सीखो,
जड़ के पीछे छिपा जो चेतन
उस प्रियतम को हर सूं देखो !

चलती फिरती है यह काया
चंचल मन इत् उत् दौड़ता,
भीतर उगते पुष्प मति के
चिदाकाश में वही कौंधता !

सत्य सदा एक सा रहता
था, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !

दृष्टा बने जो बने साक्षी
निज आनंद महारस पाता,
राज एक झाँके उस दृग से
पूर्ण हुआ खुद में न समाता !

अनिता निहालानी
२५ मार्च २०११


Wednesday, March 23, 2011

आत्मा का सूरज

आत्मा का सूरज

हमारे दिलों की गहराई में प्रेम है
अथाह प्रेम !
प्रेम से उपजी है सृष्टि
स्थित है प्रेम में
प्रेम में ही समा जाती है !

जैसे नन्हा शिशु
 प्रेम के कारण जन्मता है
संवर्धन भी होता प्रेम से
क्षरण भी संभव है तो कारण यही  !

और आत्मा का सूरज द्रष्टा है
इस चक्र का
जन्म और मृत्यु घटते हैं
आत्मा के क्षितिज पर
दिन-रात की तरह !

सूर्य सदा एक सा है
स्वयं प्रकाशित
स्वर्ण रश्मियों को निरंतर प्रवाहित करता
आत्मा के सूरज से भी
फूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !


अनिता निहालानी
२३ मार्च २०११  

Monday, March 21, 2011

तू

तू


जिधर-जिधर जाती है दृष्टि
तू ही नजर हमें आता है !

कभी पवन झंकोरा बन तपते
तन-मन को सहला जाता है,
बन बदली बरसता बन-बन
धरती को अंकुआ जाता है !

प्रखर सूर्य किरणों सँग नित
सृष्टि नई सजा जाता है,
मधुर चाँदनी की परतों में
सुस्व्प्नों में सुला जाता है !

खलिहानों में उगी फसल तू
बन नीर हिमालय से आता है,
तू भरता मिठास फलों में
कलियोंफूलों में मुस्काता है !

तू ही माँ के वात्सल्य में
शिशुओं को दुलरा जाता है,
अनुशासन बन कभी पिता का
जीवन-कला सिखा जाता है !

आचार्य बन शिक्षित करता
अर्जन योग्य बना जाता है,
सदगुरु बन के दीक्षित करता
पग-पग राह दिखा जाता है !

संगी-साथ रूप में मिलता
प्रेम का पथ पढ़ा जाता है,
तू ही अंतरंग बन जाता
अंतर रसमय कर जाता है !

अनिता निहालानी
२१ मार्च २०११

Friday, March 18, 2011

आज ईश सँग खेलें होली


आज ईश सँग खेलें होली
आज कान्ह सँग करें ठिठोली !

जब से तुम सँग जोड़ा नाता
रंगों का साथ है भाता
मन निर्मल इक सुर में गाता
हरपल रंगमय होता जाता !

आज भरी है अपनी झोली
आज शम्भु सँग खेलें होली !

अनुभव का गुलाल लगाया
प्रीत का अबीर बिखराया
रंग सुनहरा छिड़का तुमने
जैसे जामे खुशी पिलाया !

आज चली मस्तों की टोली
  आज गुरु सँग खेलें होली !

सेवा का है रंग रुपहला
प्रभु भक्ति का रंग है नीला
रंग गुलाबी में भीगा जो
अंतर हो जायेगा पीला !

आज  लगाएँ चन्दन रोली
आज श्याम सँग खेलें होली

हरा रंग बरसाया तुमने
शांति नीर बहाया तुमने
भीतर की ऊर्जा जगाई
रंग श्वेत जब पाया हमने !

आज प्रेम की मदिरा घोली
 आज राम सँग खेलें होली !

नयनों से झरता अनुराग
मस्ती से खेलें हम फाग
थिरकन कदमों की यह बोले
कब से सोया अब तो जाग !

चलो बना लें सूरत भोली
आज ईश सँग खेलें होली !


अनिता निहालानी
१८ मार्च २०११   









Tuesday, March 15, 2011

जापान में सुनामी


जापान में सुनामी

ढाया कहर सुनामी ने फिर  
भू कांपी, लहरें थर्रायीं,
ऊँची ऊँची जल दीवारें
सब कुछ सँग बहाने आयीं !

कितना बेबस और निरीह है
मानव इस कुदरत के आगे,
चला जीतने था वह इसको
लेकिन वह चाहे यह जागे !

हिला दीं पल में दृढ़ इमारतें
लपटें उठीं भयंकर नभ में,
प्राणों पर सबके बन आयी
ताश के पत्तों से घर बिखरे !

हुआ अँधेरा, फोन कटे सब
प्रियजन की बस करे प्रतीक्षा,
कुछ भी सूझ न पाए मन को
क्या खोया, क्या करे समीक्षा !

अनिता निहालानी
१६ मार्च २०११     

Monday, March 14, 2011

जीवन जैसे एक बुलबुला

जीवन जैसे एक बुलबुला


जीवन जैसे एक बुलबुला
या फिर कोई स्वप्न सलोना
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !

ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
विद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों

जैसे कोई मृग मरीचिका
उड़ता हुआ ख्याल किसी का
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !

अनिता निहालानी
१४ मार्च २०११

Wednesday, March 9, 2011

अनुराग बहे भीतर

अनुराग बहे भीतर

जड़ता से मुक्त हो मन  
आओ नव सृजन करें,
बिखरा दें श्रम सीकर  
सुमनों से धरा भरें !

संतोषी अंतर मन
पुलकित हो गात सदा,
जीवन को खेल समझ
बढ़ती हो बात सदा !

विराग ना राग रहे
अनुराग बहे भीतर,
प्रमाद पिघल जाये
बस जाग रहे भीतर !

भावों के दीप जलें
विवाद ना शुष्क करें
कण-कण कृतज्ञ रहे
जन्मों का दर्द हरें !

अग्निमय नेत्र जले
भीतर आनंद पले, 
युग-युग से मुरझाया
जीवन का पुष्प खिले !

अनिता निहालानी
मार्च २०११

Tuesday, March 8, 2011

कैवल्य

कैवल्य

घिरा अविद्या से मानव, उसे डराता यह तथ्य
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !

मुक्ति के विचार से डरता, मोहपाश में फिर फिर फंसता
आँख चुराता है प्रकाश से, अंधकार में जाता धंसता
है यही नग्न सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !

अहंकार को पोषित करता, गर्त में गिरता जाता
सुख की चाहत में दुःख के ही, बीज गिराता जाता
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !

सूत्र छिपे मुक्ति के, जब बंधन लगे सलोना
झूठ का पलड़ा भारी, सत्य लगे जब बौना
कहलाता परम सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !

अनिता निहालानी
८ मार्च २०११



Sunday, March 6, 2011

नहीं जानती

नहीं जानती

उसने पूछा, तुम कौन हो ?
कहा मैंने, मैं हूँ नहीं, हो रही हूँ
हर क्षण कुछ नयी !
हर पल बढ़ रही हूँ, बन रही हूँ
तो कुछ घट भी रही हूँ
अपरिचित हूँ मै स्वयं के लिये भी,
क्या कौंधेगा अगले पल भीतर
नहीं जानती !
यह जीवन और जगत जैसा है
वैसा क्यों है, नहीं जानती !

भीतर जो घटता है
कहाँ है उस पर वश
एक पहेली की तरह यह जगत
खुलता जाता है हर क्षण
फिर भी कम नहीं होते दीखते रहस्य !

दिखता है यह जगत
छल से भरा
फिसल जाता है
मुट्ठी से रेत की तरह
ऐसा क्यों है
नहीं जानती !

अनिता निहालानी
७ मार्च २०११