Tuesday, January 18, 2011

हैं उजियाले तट सभी

हैं उजियाले तट सभी

हुआ सोहम् नाद गुंजित भेद डाले पट सभी
अंतर ओज सतह पर आया हैं उजियाले तट सभी !

सुना श्रवण ने मन तक पहुँचा डोर श्वास की थामे
बुद्धि, चित्त अहं को तज मन आत्मतत्व को जाने !

पंचभूत से निर्मित काया जड़ प्रकृति की छाया
चेतन होती आत्म तत्व से, ढके अविद्या माया

स्थूल टिका है सूक्ष्म तत्व पर जो अमिट अविनाशी
सृष्टि के पीछे छिपा जो वह चैतन्य अधिशासी !

ज्ञानदीप हुआ प्रज्ज्वलित छंट गए भ्रम सभी
अंतर ओज सतह पर आया हैं उजियाले तट सभी !

अनिता निहालानी
१८ जनवरी २०११  

3 comments:

  1. ज्ञानदीप हुआ प्रज्ज्वलित छंट गए भ्रम सभी
    अंतर ओज सतह पर आया हैं उजियाले तट सभी.

    अत्यंत ही सुन्दर भाव

    "संतों की संगत करी नहीं भँवरा,
    भरम कैसे भागे रे,
    तेरे जनम जनम के पाप जो थे,
    भक्ति का रंग कैसे लागे रे.......


    *खेद है की व्यस्तता के कारण आपकी रचनाये समय पर पढ़ नहीं सका

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  2. ज्ञानदीप हुआ प्रज्ज्वलित छंट गए भ्रम सभी
    अंतर ओज सतह पर आया हैं उजियाले तट सभी !

    गहन दर्शन का प्रभावपूर्ण चित्रण..आभार

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  3. गहन भाव लिये सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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