Tuesday, January 25, 2011

सद-गुरु

सद-गुरु

मिटा दे खुद को खुदा मिलेगा
कटा दे सर को खुदा मिलेगा,
अहं का पर्दा जुदा कर रहा
गिरा दे इसको खुदा मिलेगा !

हमारी मैं बनी बेड़ी
अहं हमारी राह रोकता,
मेरी-तेरी की माया में
उलझा मानस नहीं सोचता !

सदगुरु चिंतन मनन सिखाते
ज्ञानमयी वर्षा में भिगाते,
तोड़ अविद्या के पहरों को
अपना आपा हमें दिखाते !

रूप, बल, धन, बुद्धि का
तज अभिमान गुरुदर आयें,
पावन प्रेम लिये अंतर में
पूज्य देव सम गुरु रिझाएँ !

छल-छल करुणा धार बहे
रस भीनी मधुर बयार बहे,
मातृवत गुरु हृदय में
जन-जन हेतु प्यार बहे !

अनिता निहालानी
२५ जनवरी २०११

1 comment:

  1. Aadami ko aadami banane ka rasta dikhaati hai aapki sundar bhaon se saji kavita.
    Sundar abhvyakti ke liye dhanyawaad.

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