खत्म हुई अब दौड़ जगत की
पाना कुछ भी न शेष रहा,
अमृत का घट पाया भीतर
जग जमघट जाता नहीं सहा !
पाकर भी तुमको, हे ईश्वर !
क्या सचमुच हमने पाया है,
जानें कितना भी भेद नहीं
थोड़ा सा भी खुल पाया है !
फिर भी लगता है, अपने हो
सम्पूर्ण रूप से अपने हो,
कोई कहे मिला दो हमको
तो लगता है तुम सपने हो !
कोई कहे मिला दो हमको....सुन्दर रचना, वैसे मेरा मत है की उससे तो खुद ही मिलना पड़ता है, वहाँ कोई परिचय काम नहीं आता है,
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए साधुवाद.