Tuesday, January 4, 2011

भावांजलि

खत्म हुई अब दौड़ जगत की
पाना कुछ भी न शेष रहा,
अमृत का घट पाया भीतर
जग जमघट जाता नहीं सहा !

पाकर भी तुमको, हे ईश्वर !
क्या सचमुच हमने पाया है,
जानें कितना भी भेद नहीं
थोड़ा सा भी खुल पाया है !

फिर भी लगता है, अपने हो
सम्पूर्ण रूप से अपने हो,
कोई कहे मिला दो हमको
तो लगता है तुम सपने हो !

1 comment:

  1. कोई कहे मिला दो हमको....सुन्दर रचना, वैसे मेरा मत है की उससे तो खुद ही मिलना पड़ता है, वहाँ कोई परिचय काम नहीं आता है,

    सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.

    ReplyDelete