मौन में सब कह जाते
नयनोँ में स्मित हास और अतल गहराई
वाणी जैसे ऋषि अन्तर को छू कर आयी !
छलकाते अपनत्व सदा सरल सहज उल्लास
मधुर प्रेम प्रसाद बाँट भरते उर में विश्वास !
दिव्य दृष्टि से मोहित कर लखते मुस्काते
मौन मुखर हो उठता मौन में सब कह जाते
ज्ञान सिंधु, प्रेम निर्झर और शांति धाम
मंगलमूर्ति सौम्यता की सद् गुरु अभिराम
अनिता निहलानी
१४ जनवरी २०११
१४ जनवरी २०११
छलकाते अपनत्व सदा सरल सहज उल्लास
ReplyDeleteमधुर प्रेम प्रसाद बाँट भरते उर में विश्वास !
प्रेम ही विश्वास बढ़ता है -
बहुत सुंदर रचना