Saturday, January 12, 2013

ब्रह्माजी का रावण के वध का उपाय ढूँढ निकलना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 



पंचदशः सर्गः
ऋष्यश्रंग द्वारा राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ का आरम्भ, देवताओं की प्रार्थना से ब्रह्माजी का रावण के वध का उपाय ढूँढ निकलना तथा भगवान विष्णु का देवताओं को आश्वासन देना 


देवों के ऐसा कहने पर, कुछ सोच यह बोले ब्रह्मा
मुझे ज्ञात हो गया उपाय, उस दुरात्मा के वध का

वर माँगा था जब उसने, यही कही थी एक बात तो
यक्ष, देव, राक्षस न मारें, न ही मरूं गन्धर्व के हाथों

“ऐसा ही हो” कहकर मैंने, मानी थी उसकी अभिलाषा
नहीं अवध्य वह मानव से, मानव को तो तुच्छ समझता

मानव के अतिरिक्त न दूजा, कोई उसका वध कर सकता
सुन कर हर्षित हुए ऋषिगण, अब है रावण मर सकता

इसी समय महान तेजस्वी, जगतपति श्री विष्णु भगवान
मेघ के ऊपर सूर्य हो जैसे, आए गरुड़ पर हो विद्यमान

पीताम्बर धारे थे तन पर, शंख, चक्र गदा आदि ले
तपे हुए सोने के केयूर, थे सुशोभित द्वि भुजा में

वन्दित हुए सभी देवों से, ब्रह्मा जी से मिले वहाँ
हुए विराजित उसी सभा में, यज्ञ हुआ था पूर्ण जहां

कहा विनय से भर देवों ने, सर्व व्यापी, हे परमेश्वर !
तीनों लोकों का हित जिसमें, एक महा कार्य आप पर

प्रभो, अयोध्या के राजा, धर्मज्ञ, उदार बहुत हैं
तेजस्वी महर्षियों जैसे, उनकी तीन रानियाँ हैं

ह्री, श्री और कीर्ति जैसी, हैं देवियों के ही समान
चार स्वरूप बना कर अपने, पुत्र रूप में लें अवतार  

 वध कर डालें समर भूमि में, महा पराक्रमी रावण का  
देवों से जो है अवध्य, कंटक रूप है जो जग का

मूर्ख राक्षस रावण जग में, कष्ट दे रहा है सबको
गन्धर्वों, सिद्धों आदि को, साथ मुनि, महर्षियों को

रौद्र निशाचर ने ऋषियों को, नन्दन वन से गन्धर्वों को
गिरा दिया है भूमि पर, स्वर्ग से भी अप्सराओं को


7 comments:

  1. बहुत सुन्दर चित्रण किया है

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  2. बेहद प्रवाह लिए काव्य प्रवाह स्वरूपा है यह रचना

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  3. सुन्दर चित्रण
    सादर आभार !

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  4. बहुत सुन्दर !!


    हो सके तो इस ब्लॉग पर भी पधारे

    पोस्ट
    Gift- Every Second of My life.

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  5. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  6. वन्दना जी, आदित्य जी, वीरू भाई, प्रसन्न जी, शिवनाथ जी तथा उड़ता पंछी जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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