श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
एकनवतितम: सर्ग:
भरद्वाज मुनि के द्वारा सेनासहित भरत का दिव्य सत्कार
ब्रह्मर्षि भरद्वाज कृपा से, चूने से जो पुते हुए थे
ब्रह्माजी की भेजी हुईं जो, दिव्य गहनों से आभूषित
बीस हजार दिव्यांगनाएँ, उसी घड़ी में हुईं उपस्थित
सुवर्ण, मणि, मुक्ता, मूंगों से, विभूषित अन्य बीस हजार
भेजा था कुबेर ने उनको, स्पर्श से जिनके हो उन्माद
इसके सिवा नन्दन वन से, बीस हजार अप्सराएं आयीं
गोप, तुम्बुररू व नारद, गन्धर्वों ने थी तान लगायी
अलम्बुषा, मिश्रकेशी, अप्सरा, पुण्डरीका व वामना भी
करने लगीं नृत्य चारों ये, पाकर आज्ञा मुनिराज की
देवों के उद्यान में मिलते, व चैत्ररथ वन में जो फूल
प्रयाग में वे पड़े दिखाई, मुनि भरद्वाज के अनुकूल
बेल के वृक्ष मृदंग बजाते, शम्या ताल देते बहेड़े
नृत्य कर रहे पेड़ पीपल के, भरद्वाज मुनि के तप से
देवदारु, ताल, तिलक, तमाल, आदि बनकर कुबड़े व बौने
भरत की सेवा में आये, पादप सभी वे बड़े हर्ष से
शिंशपा, आमलकी, जम्बू वृक्ष, मालती, मल्लिका लताएं
नारी रूप धार कर आयीं, सैनिकों को आवाज लगाएं
मधु का पान करो, यह खाओ, फलों के गूदे प्रस्तुत हैं
जिसकी जो इच्छा हो पाओ, यह अति सुस्वादु खीर भी है
सात-आठ तरुणियाँ मिलकर, एक-एक को नहलाती थीं
अतिथियों का करती सत्कार, स्वादिष्ट पेय पिलाती थीं
पश्चात वाहन रक्षकों ने, पशुओं को दाना घास दिया
हाथी, घोड़े, ऊंट, बैलों को, समुचित सभी आहार दिया
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