Wednesday, February 9, 2011

कोटि नमन निज सु-मन, सुमति को


कोटि नमन निज सु-मन, सुमति को

नमन धरा को और गगन को
नमन नीर को और पवन को,
नमन सर्वदा पूत अगन को
कोटि नमन निज सुमन, सुमति को !

शत-शत नमन संत जनों को
ऋषियों, मुनियों की वाणी को,
नमन अनंत तुम्हें हो सदगुरु
जिसने नमन सिखाया हमको !

जिन पितरों के हुए वंशधर
 उनको शत-शत बार नमन,
मातृदेव भव, पितृदेव भव
उनसे ही पाया है जीवन !

नमन सूर्य को नमन धरा को
हो नमन सभी दिक्पालों को,
साक्षी हों सम्पूर्ण दिशाएं
सादर नमन परम ब्रह्म को !

अनिता निहालानी
९ फरवरी २०११      

3 comments:

  1. भक्तिमय सुन्दर रचना, आभार.

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  2. bahut sundar kaveeeta.
    जंगल राज ---ब्यंग.

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  3. आद.अनीता जी,
    आपकी कविता के भाव बहुत सुन्दर लगे !
    यही नमन ही तो है जिसे आज हम भुला बैठे हैं !

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