Saturday, August 4, 2012

राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


षष्टः सर्गः

राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन 

कोई ऐसा नहीं वहाँ था, उत्तम वस्तु न रखता हो
धर्म आदि पुरुषार्थ भी जिसके, सिद्ध न हों, अभाव सहता हो

कामी, कृपण, मूर्ख न कोई, क्रूर और नास्तिक न थे
सभी स्त्री-पुरुष वहाँ के, धर्मशील, संयमी, खुश थे

ऋषियों जैसा शील था उनका, सद्आचरण निर्मल करते थे
सुदंर, स्वच्छ, लगाये चन्दन, कुंडल, मुकुट, हार धरते थे

धन-धान्य की कमी नहीं थी, बाजूबंद, निष्क, पहने थे
दानी, मन को वश में रखते, पवित्र अन्न ग्रहण करते थे

अग्निहोत्र यज्ञ सब करते, देव व अतिथि पूजक थे
क्षुद्र, चोर, आचार शून्य, ऐसे मानव वहाँ नहीं थे

अयोध्या के निवासी ब्राह्मण, सदा कर्म में रत रहते थे
दान और स्वाध्याय करते, प्रतिग्रह से बचे रहते थे

एक भी ऐसा द्विज नहीं था, हो नास्तिक या असत्यवादी
शास्त्र ज्ञान से रहित न कोई, परदोष दृष्टि न विद्या हीन ही

साधन में असमर्थ न कोई, वेदों को थे सभी जानते
व्रत शील, दानी प्रसन्न, रूपवान, सब श्रीमान थे

राजभक्ति भी भरी थी उनमें, दीर्घायु सब सुख से रहते
स्त्री, पुत्र, पौत्र के सँग वे, सत्य धर्म का पालन करते

क्षत्रिय, ब्राह्मण का मुँह जोहते, वैश्य, क्षत्रियों की मानें
तीनों वर्णों की सेवा में, कर्तव्य पालना शुद्र भी करें

जैसे मनु ने की थी रक्षा, अयोध्या पुरी की पूर्वकाल में
राजा दशरथ भी तत्पर थे, रक्षा करने सभी काल में

शौर्य की थी अधिकता जिनमें, दुर्धुर्ष जो अग्नि सम थे
रहित कपट से, अभिमानी भी, अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाताओं से

भरी-पूरी थी पूर्ण अयोध्या, जैसे गुफा, सिंह समूह से
इंद्र के उच्चैःश्रवा समान, भरी हुई सुंदर अश्वों से

काम्बोज, बाह्लीक देश के, उत्तम वंश के घोड़ों से
वनायु देश के अश्व वहाँ थे, दरियाई भी सिंधु तट के

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर वर्णन....
    आभार...!

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