अयोध्या से गंगातट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का
निर्माण
ऊँची-नीची,
निर्जल व सजल, ध्यान भूमि का जो
रखते थे
सूत्र कर्म करने
वाले कई, शूर-वीर मार्ग
रक्षक थे
दें नदी पार करने
के साधन, भू खोद सुरंग
बनाते
जल प्रवाह को रोक
सकें, वेतनभोगी,
रथ, यंत्र बनाते
लकड़हारे, काष्ठकार, रसोइये, चूना पोतने वाले
बांस चटाई,
सूप बनाते, चमड़े की वस्तुएं बनाते
थे विशेष ज्ञानी
रस्तों के, समर्थ पुरुष गये
थे पहले
मार्ग ठीक करने
हेतु सभी, वन प्रदेश की ओर
वे चले
पूर्णिमा के दिन
जो उमड़ा, उस सागर की भांति
वेग से
कारीगर निपुण दल
लेकर, औजारों के साथ चल
दिए
लता, बेल, झाड़ियाँ, ठूँठ, काट अनेक वृक्षों
को चलते
पत्थर हटा मार्ग
बनाते, जहाँ नहीं थे
वृक्ष लगाते
कुल्हाड़ों,
टंकों, हंसियों से, वृक्षों व घास को काटते
कुश, कास आदि झुरमुट को, फेंक रहे थे उखाड़ हाथों से
जहाँ-तहाँ,
ऊँचे-नीचे भू को, खोद-खोद बराबर करते
अन्य लोग सूखे कुओं
व, गड्ढों को पाटते मिट्टी
से
जो स्थान नीचे
होते थे, शीघ्र ही उन्हें बराबर करते
पुल बाँधने योग्य
जल जहाँ, झट जाकर वहाँ पुल भी बाँधे
कंकरीली भूमि थी
जहाँ पर, किया मुलायम ठोक-पीटकर
जल बहने हित
मार्ग बनाया, जहाँ जरूरी बाँध काटकर
छोटे-छोटे सोतों
को तब, जिनका पानी बह जाता था
चहुँ ओर से बाँध
उन्हें भी, बना दिया अतीव जलवाला
इस प्रकार अल्प
समय में, भिन्न-भिन्न तालाब बनवाये
भरा अगाध जल था
उनमें, सागर समान जान पड़ते थे
निर्जन स्थानों
में अनेकों, कुएं, बावड़ी आदि बनवाये
सुंदर लगते थे जो
सारे, निकट बनी
वेदिकाओं से
देवताओं के मार्ग
की भांति, शोभित होने लगा
रास्ता
चूना-सुर्खी,
बिछाके कंकर, कूटपीट किया था पक्का
मार्ग किनारे
वृक्ष लगाये, फूल खिले,
पंछी भी चहके
चन्दन मिश्रित जल
छिड़का, सजा दिया था
पताकाओं से
शिविर-छावनी बनाने
हेतु, अधिकार जिन्हें
दिया गया था
आज्ञा लेकर उन
सभी ने, शिविर बनाकर
उन्हें सजाया
जहाँ फलों की थी
अधिकता, उन प्रदेशों में
शिविर लगे थे
उत्तम मुहूर्त व
नक्षत्र में, प्रतिष्ठा की फिर
वास्तुविदों ने
बने मार्ग में वे
निवेश तब, इंद्र पुरी सी शोभा पाते
चारों ओर खाइयाँ
खोदीं, मिट्टी् के कई
ढेर लगवाये
नीलमणि प्रतिमाएं
शोभित थीं, उन खेमों के भीतर
सुंदर
गलियों, सडकों से शोभा थी, सुंदर प्राकारों से घिरकर
पताकाओं से सजे
हुए थे, विश्रामगृह सड़क किनारे
था स्थान कबूतरों
का भी, शोभित होते थे
खेमे सारे
वृक्षों और वनों
से सशोभित, शीतल-निर्मल जल
से पूरित
मत्स्यों से
व्याप्त गंगा के, बना था राजमार्ग वह तट पर
कुशल कारीगरों ने
उसका, निपुणता से
निर्माण किया था
चाँद-तारों से
मंडित नभ सम, रात्रि काल में
शोभित होता
इस
प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में अस्सीवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
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