Friday, June 14, 2019

भरत का वन में चलने की तैयारी के निमित्त सबको आदेश देना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


द्व्यशीतितमः सर्गः

वसिष्ठ जी का भरत को राज्य पर अभिषिक्त होने के लिए आदेश देना तथा भरत का उसे अनुचित बताकर अस्वीकार करना और श्रीराम को लौटा लाने के लिए वन में चलने की तैयारी के निमित्त सबको आदेश देना

अपने उर में रखकर इसको, धर्मसंगत बात तब कहें
श्रेष्ठ गुणों में हैं श्रीराम, अवस्था में भी मुझसे बड़े

दिलीप और नहुष की भांति, हैं अति तेजस्वी भ्राता राम
महाराज दशरथ की भांति, है राज्य पर उनका अधिकार

पाप आचरण नीच ही करते, निश्चय ही नर्क ले जाता
राज्य राम का लेकर मैं भी, पापी व कलंकी कहलाता 

माँ का पाप मुझे नहीं भाता, इसीलिए यहाँ रहकर भी
दुर्गम वन में रहने वाले, श्रीराम को करता विनती

उनका ही अनुसरण करूंगा, नरश्रेष्ठ, राजा हैं वही
अवध ही नहीं तीन लोक के, राजा होने के योग्य वही

धर्मयुक्त वचन ये सुनकर, हर्ष के आँसूं बहे सभी के
श्रीराम में चित्त लगाकर, भरत को देखा बड़े प्रेम से

पुनः कहा भरत ने सब से, राम को यदि लौटा न पाऊँगा 
नरश्रेष्ठ लक्ष्मण की भांति, मैं भी वन में निवास करूँगा

आप सभी पूज्यों के सम्मुख, सद्गुणों से जो हैं युक्त 
पूर्ण चेष्टा मैं करूँगा, श्रीराम को लौटा लाने हित

मार्गशोधन में जो कुशल हैं, वेतन भोगी व अवैतनिक
पहले ही भेजा है उनको, अब हमारा भी जाना उचित

सभासदों से ऐसा कहकर, भातृवत्सल श्रेष्ठ भरत तब
मंत्रवेत्ता सुमन्त्र से बोले, आज्ञा पालन हो तुरंत अब

सबको वन जाने को कहिये, सेना को भी शीघ्र बुलाएं
बड़े हर्ष से तब सुमन्त्र ने, सबको यह आदेश सुनाये

श्रीराम को लौटा लाने, भरत और सेना जायेंगे
प्रसन्न हुए प्रजाजन यह सुन, सेनापति भी अति हर्षाये

घर-घर में स्त्रियाँ हो हर्षित, पतियों को करने लगीं प्रेरित
अश्व, गज, बैल गाड़ी, रथ, सभी जुतेंगे यात्रा के हित

सेना को उद्यत देखकर, अपने रथ को भी मंगवाया
बड़े वेग से गये सुमन्त्र, जुता हुआ उत्तम रथ आया

तब प्रतापी भरत ने कहा, कल ही सेना कूच करेगी
श्रीराम को लाना चाहता, कर प्रसन्न, जगत के हित ही 

उत्तम आज्ञा भरत की पा, सुमन्त्र ने आदेश सुनाया
घर-घर में सबने उठकर तब, हाथी घोड़ों को जुतवाया


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में बयासीवाँ सर्ग पूरा हुआ.



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