श्रीसीतारामचंद्राभ्यां
नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
षट्सप्ततितमः सर्गः
राजा दशरथ का अंत्येष्टि संस्कार
शोक से जो संतप्त हुए थे, कैकेयीकुमार भरत से
बोले वचन ये वशिष्ठ मुनि ने, वक्ताओं में जो श्रेष्ठ थे
हो कल्याण सदा तुम्हारा, व्यर्थ शोक को अब तुम त्यागो
हो दाह संस्कार शीघ्र राजा का, कर्त्तव्य पर अब ध्यान दो
साष्टांग प्रणाम किया तब, राजपुत्र ने भूमि पर गिरके
किया प्रबंध प्रेत कर्म का, तब मंत्रियों आदि से कह के
तेल भरे कड़ाहे से तब, शव राजा का बाहर निकाला
जैसे भूमि पर शयन कर रहे, पीला मुख देख लगता था
धो-पोंछ कर देह राजा की, उत्तम शय्या पर लिटाया
पुत्र भरत ने देख पिता को, करुण स्वरो में शोक मनाया
नहीं पहुंच पाया आप तक, क्योंकि मैं परदेश में ही था
वन भेजकर श्रीराम को , कैसे स्वर्गलोग को गमन किया
भ्राता राम सदा करते जो, अनायास ही कर्म महान
नहीं दिखाई देते हैं अब, किया आपने भी प्रस्थान
गमन स्वर्ग का किया आपने, वन की राह राम ने पकड़ी
निश्चिन्त हो कौन करेगा, देखभाल आपकी प्रजा
की
बिना आपके विधवा हुई है, भूमि यह शोभित न होती
चन्द्र हीन रात्रि की भांति, यह श्रीहीन सी प्रतीत हो रही
दीन भाव से आकुल होकर, जब भरत विलाप करते थे
शांति पूर्ण संस्कार अब करो, पुनः वसिष्ठ मुनि यही बोले
‘अच्छा’ कहकर शिरोधार्य की, तब मुनिवर की बात भरत ने
आचार्य, पुरोहित, ऋत्विक आदि, सब को समोचित आदेश दिए
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/03/2019 की बुलेटिन, " अपने अभिनंदन के अभिनंदन की प्रतीक्षा में देश “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार!
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