श्रीसीतारामचंद्राभ्यां
नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
षट्सप्ततितमः सर्गः
राजा दशरथ का अंत्येष्टि संस्कार
राजा की अग्निशाला से, जो अग्नियाँ लायी गयी
थीं
ऋत्विजों और याजकों द्वारा,
विधिवत हवन
हुआ उनसे ही
तत्पश्चात राजा के शव को, श्मशान ले गये परिचारक
अश्रुओं से गला रुंधा था, वे अति पीड़ित थे मन
ही मन
राजकीय पुरुष आगे चलते,चाँदी, स्वर्ण, वस्त्र लुटाते
की चिता की तैयारी फिर, चन्दन लाकर रखा किसी ने
गुगुल, सरल, पद्मक, देवदारु, ला लाकर डालते चिता में
राजा के शव को रखा, सुगन्धित पदार्थ भी
तरह-तरह के
अग्नि में आहुतियां देकर, वेदोक्त मन्त्रों का जाप
किया
सामगान करने वालों ने, विधि अनुसार तब गान किया
कौसल्या आदि सभी रानियाँ, शिविकाओं, रथों पर आयीं
परिक्रमा की चिता की सबने, ऋत्विजों ने भी रीति
निभायी
करूण क्रन्दन रानियों का वह,
चीत्कार सम
लगता था
बेबस उन रोती हुईं का, काफिला सरयू तट पर उतरा
भरत, रानियों, पुरोहितों ने, राजा हित दी जलांजलि तब
दुःख से नगर में समय बिताया, भू पर सोये दस दिन तक
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि
निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छिहत्तरवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
बहुत सुंदर। जय श्री राम।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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स्वागत व आभार
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