Tuesday, December 7, 2010

भावांजलि

कब चुपके से आकर मन में
तुमने अपना किया बसेरा,
कितनी सुंदर स्मृतियों से
अपनी पहचानों को उकेरा !
छोटे छोटे जग सपनों सँग
होकर एक रस छिपी हुई थी,
उस सुस्मृति को आज टटोला
सुख-दुःख सँग जो घुलीमिली थी !
आज पुनः आगमन तुम्हारा
देखो उस पर ध्यान न देना,
मधुर मिलन की याद तुम्हारी
सदा ह्रदय में रहने देना !


है मधुर विरह की यह पीड़ा
प्रतीक्षा में आनंद छुपाये,
तुमसे मिलने की प्रत्याशा
आतुर अंतर पलक बिछाये !

1 comment:

  1. "है मधुर विरह की यह पीड़ा" सुन्दर रचना, साधुवाद

    ReplyDelete