वसिष्ठजी का सृष्टि परंपरा के साथ इक्ष्वाकु कुल की परंपरा बताकर ज्येष्ठ के हाई राज्याभिषेक का औचित्य सिद्द्ध करना और श्रीराम जी से राज्य ग्रहण करने के लिए कहना
श्री रामचंद्र को रुष्ट जान, यह कहा महर्षि वसिष्ठ ने
अस्तित्त्व है परलोक का, ब्राह्मण जाबालि भी यह जानते
तुमको लौटाने की ख़ातिर, ऐसी बात कही उन्होंने
इस लोक की उत्पत्ति का, अब यह वृत्तांत सुनो तुम मुझसे
सभी जलमय था आरम्भ में, जल से भू का निर्माण हुआ
ब्रह्मा प्रकटे देवों के सँग, बन विष्णु वराहावतार लिया
जल के भीतर से पृथ्वी को, इसी रूप में बाहर निकाला
कृतात्मा पुत्रों के संग मिल, ब्रह्मा ने जग निर्माण किया
परब्रह्म परमात्मा से, प्रादुर्भाव हुआ ब्रह्मा का
नित्य,सनातन, अविनाशी जो, फिर मरीचि, जिनसे कश्यप का
कश्यप से हुए विवस्वान फिर, प्रजापति वैवस्त मनु थे
मनु के पुत्र हुए इक्ष्वाकु, राजा जिन्हें बनाया मनु ने
प्रथम नरेश अयोध्या के थे वे, उनसे कुक्षि, फिर विकुक्षि
महाप्रतापी बाण हुए फिर, अनरण्य थे जिनके पुत्र श्री
सत्पुरुषों में श्रेष्ठ राजा थे, नहीं अकाल, सूखा देखा
कोई चोर नहीं था राज्य में, उनके पुत्र थे पृथु राजा
महातेजस्वी त्रिशंकु की, उत्पत्ति हुई राजा पृथु से
विश्वामित्र के सत् प्रभाव से, स्वर्ग सदेह वे चले गए
महायशस्वी धुँधुमार फिर, राजा त्रिशंकु के पुत्र हुए
धुँधुमार के युवनाश्व थे, जिनके पुत्र श्री मांधाता थे
सुसंधि पुत्र मांधाता के, ध्रुवसंधि व प्रसेनजित उनके
ध्रुवसंधि के पुत्र भरत थे, असित का जन्म हुआ था जिन से
तालजाँघ व शशबिंदु से मिल, शत्रु हैहय ने उन्हें हराया
शैल शिखर पर मुनिभाव से, चिंतन करते परमात्मा का
इक्ष्वाकु कूल के बारे में सुंदर जानकारी।
ReplyDeleteस्वागत व आभार ज्योति जी !
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