श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
दशाधिकततम: सर्ग:
सुना गया है राजा असित की, दो पत्नियाँ गर्भवती थीं
उत्तम पुत्र हेतु रानी ने, च्यवन मुनि की अभ्यर्थना की
अन्य रानी ने गरल दिया, गर्भ नष्ट करने को सौत का
किन्तु उसे वरदान प्राप्त था, भृगुवंशी महा च्यवन मुनि का
महामनस्वी, लोक विख्यात, प्राप्त तुम्हें महान सुत होगा
अति धर्मात्मा, कुलवर्धक वह, शत्रु का संहारक होगा
कालांतर में रानी ने फिर, एक पुत्र को जन्म दिया था
नेत्र कमलदल सम सुंदर थे, शरीर भी अति कांतिवान था
नष्ट करने उसे गर्भ में, गर दिया था सौतेली माँ ने
उसके सहित ही वह जन्मा था, सगर कहलाया इसीलिए
राजा सगर वह जिन्होंने, प्रजाओं को अति भयभीत किया
पर्व के दिन ले यज्ञ दीक्षा, पुत्रों से सिंधु खुदवाया
पुत्र सगर का था असमञ्जस, पापकर्म में जो प्रवृत्त था
पिता ने जीते जी ही जिसको, शासन से निकाल दिया था
असमञ्जस के सुत अंशुमान थे, अंशुमान के थे दिलीप
भागीरथ हुए दिलीप के पुत्र, ककुत्स्थ के पिता भगीरथ
ककुसत्थ के घर रघु जन्मे, जिनसे वंश कहलाये राघव
रघु के सुत कल्माषपाद थे, शाप वश जो बने थे राक्षस
उनके सुत हुए थे शंखण, सेना सहित जो नष्ट हुए थे
शंखण के श्रीमान सुदर्शन, अग्निवर्ण पुत्र सुदर्शन के
अग्निनवर्ण के यहाँ शीघ्रग, उनके मरू, प्रशुश्रुव मरु के
प्रशुश्रुव के सुत रूप में, महाबुद्धिमान अम्बरीष हुए
अम्बरीष के पुत्र नहुष थे, नाभाग हुए पुत्र नहुष के
नाभाग के अज तथा सुव्रत, दशरथ थे सुत राजा अज के
दशरथ के तुम बड़े पुत्र हो, श्रीराम नाम से जो प्रसिद्ध
अयोध्या का राज्य है तुम्हारा, अधिकार पूर्व करो ग्रहण
बड़ा पुत्र ही राजा बनता, इक्ष्वाकुवंश की रीत यही
होते हुए ज्येष्ठ पुत्र के, वारिस कभी छोटा पुत्र नहीं
रघुवंशियों का कुलधर्म है, नष्ट नहीं करो उसको आज
रत्नराशि से संपन्न भू पर , पिता समान करो तुम राज
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के
अयोध्याकाण्ड में एक सौ दसवाँ सर्ग पूरा हुआ.
आदरणीया अनीता जी !
ReplyDeleteबहुत अभिनंदनीय प्रयास , प्रभु पूर्णता प्रदान करे !
जय जय सियाराम !
स्वागत व आभार तरुण जी!
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