श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
नवाधिकशततम: सर्ग:
श्रीराम के द्वारा ज़ाबालि के मत का खंडन करके आस्तिक मत का स्थापन
शिष्ट पुरुष करें सत्य पालन, यही है सुंदर जीवन नीति
तर्कपूर्ण वचनों के द्वारा, सिद्ध किया है जो आपने
श्रेष्ठ प्रतीत भले होता हो,नहीं उपयुक्त आचरण के
वन में रहने की प्रतिज्ञा, मैंने पिता के सम्मुख की है
कैसे मानूँ बात भरत की, मेरी यह प्रतिज्ञा अटल है
जब मैंने प्रतिज्ञा की थी, कैकेयी माँ हर्षित हुईं थीं
भीतर-बाहर बनूँ मैं पावन, अब वन ही शरण स्थली होगी
फल, मूल, पुष्पों के द्वारा, देवों, पितरों को तृप्त करूँगा
निर्णय किया उचित,अनुचित का, श्रद्धापूर्वक पूर्ण करूँगा
पाकर सब इस कर्मभूमि को, शुभ कर्मों का करें अनुष्ठान
अगिन, वायु, सोम आदि को कर्मों के कारण मिला सम्मान
सौ यज्ञों का किया अनुष्ठान, स्वर्गलोक इंद्र ने पाया
उग्र तपस्या कर तापसों ने, स्थान दिव्य लोक में पाया
परलोक की सत्ता का खण्डन, जाबालि ने जो किया था
श्रीराम सहन न कर पाए, निंदा करते यह वचन कहा
सत्य, धर्म, पराक्रम, प्रिय वाणी, सभी प्राणियों के प्रति दया
देवों, अतिथि, ब्राह्मणों की पूजा, यही स्वर्ग का मार्ग कहा
धर्म का शुद्ध स्वरूप जानकर, तर्क से निश्चय पर पहुँच कर
उत्तम लोक प्राप्त करते हैं, ब्राह्मण धर्म का आचरण कर
विषम-मार्ग में स्थित होकर, वेद विरुद्ध हुई बुद्धि आपकी
दूर धर्म से, बने नास्तिक, निंदा करता हूँ इस कार्य की
पिताजी ने अपना याजक, कैसे बना लिया था आपको
जैसे चोर निंदनीय सदा, वेद विरोधी दंडनीय हो
श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने सदा ही, शुभ कर्मों का किया अनुष्ठान
वेदों को प्रमाण मानकर, कृत, हुत आदि का किया सम्पादन
धर्म में तत्पर रहने वाले, सत्पुरुषों का संग जो करें
तेज से सम्पन्न, युक्त दान से, श्रेष्ठ मुनि ही पूजित होएं
दैन्य भाव से रहित राम ने, रोषयुक्त ये शब्द कहे जब
विनयपूर्वक जाबालि ने, हितकारी व सत्य वचन कहे तब
नहीं नास्तिक हूँ मैं राम, न ही नास्तिकों की बातें करता
आवश्यकता पड़ने पर केवल, मैं पुनः नास्तिक हो सकता
ऐसा ही अवसर आया था, नास्तिकता की कहीं थीं बातें
एक मात्र उद्देश्य था इसमें, आप पुनः अयोध्या लौटें
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में
एक सौ नौवाँ सर्ग पूरा हुआ.
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