श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
सप्ताधिकशततम: सर्ग:
श्रीराम का भरत को समझाकर उन्हें अयोध्या जाने का आदेश देना
जब पुनः भरत ने किया निवेदन, तब ये वचन कहे राम ने
सत्कार पूर्वक जो बैठे थे, मध्य में परिवार जनों के
भरत ! तुमने जो शब्द कहे हैं, सर्वथा हैं योग्य तुम्हारे
कैकयराज की कन्या माता, राजा दशरथ पिता तुम्हारे
वर्षों पहले की बात है, जब दोनों का विवाह हुआ था
कैकेयी पुत्र बने राजा, यह वचन नाना से कहा था
देवासुर संग्राम में भी जब, महाराज का साथ दिया था
अति सन्तुष्ट हुए पिता ने, माता को वरदान दिया था
उस की पूर्ति हेतु माता ने, दो वर मांगे थे राजा से
राज्य तुम्हारा, मेरा वनवास, राजा ने ये वचन दिए थे
इस कारण मैं वन आया, यहां न कोई प्रतिद्वंदी मेरा
पिता के सत्य की रक्षा हित, चौदह वर्ष मैं यहीं रहूँगा
तुम भी मानो उनकी आज्ञा, राज्य का अभिषेक कराओ
यही तुम्हारे लिए उचित है, पिता को सत्यवादी बनाओ
मुक्त करो कैकेयी ऋण से, नर्क में गिरने से बचाओ
मेरी खातिर यही करो तुम, माता का आनंद बढ़ाओ
यज्ञ के समय गय नरेश ने, यही कहा था पितरों के हित
पुत् नामक नर्क से पिता का, जो करता उद्धार,वही पुत्र
गुणवान, बहुश्रुत पुत्रों की, इसीलिए इच्छा सब करते
कोई यात्रा करे गया की, सम्भवतः उन पुत्रों में से
इस तरह सब राजाओं ने, पितरों का उद्धार ही चाहा
अत: उद्धार करो नर्क से, तुम भी अपने पूज्य पिता का
ले शत्रुघ्न व ब्राह्मणों को, लौट अयोध्या प्रजा को सुख दो
लक्ष्मण व सीता संग मैं भी, जाऊँगा दण्डकारण्य को
तुम बनो मनुष्यों के राजा, मैं वन पशु सम्राट बनूँगा
हर्षित होकर अब लौटो तुम, मैं भी ख़ुशी ख़ुशी जाऊँगा
सूर्य प्रभा को कर तिरोहित, छत्र तुम्हें शीतल छाया दे
मैं भी छाया ग्रहण करूँगा, नीचे इन जंगली वृक्षों के
अतुलित बुद्धि वाले शत्रुघ्न, सेवा में सदा रहें तुम्हारी
लक्ष्मण मेरे सदा सहायक, चारों रक्षा करें सत्य की
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में
एक सौ सातवाँ सर्ग पूरा हुआ.
नमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 24/04/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
बहुत बहुत आभार कुलदीप जी !
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