Thursday, March 25, 2021

भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

नवनवतितम: सर्ग:


भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला को देखना तथा रोते-रोते उनके चरणों में गिर जाना, श्रीराम का उनको हृदय से लगाना और मिलना 


भाई के दर्शन को उत्सुक, प्रिय शत्रुघ्न को साथ लिए 

आश्रम के चिह्न पथ पर दिखते, भरत उसी की और चले 


माताओं को संग ले आएं, गुरू को यह संदेश दिया

पीछे-पीछे थे सुमन्त्र भी, ले राम  दर्श की अभिलाषा  


चलते-चलते कुमार भरत ने, पर्णकुटी राम की देखी

सम्मुख थे काष्ठ के टुकड़े, पूजा की सामग्री वहाँ थी 


आश्रम तक आने-जाने हित, मार्ग बोधक चिह्न लगे थे 

कुशों और चीरों के द्वारा, शाखाओं में लटक रहे थे 


शीत निवारण हेतु वहां, सूखे गोबर के ढेर पड़े थे 

लगता है हम आ ही पहुँचे, कहा भरत ने तब औरों से 


जिस स्थान का पता बताया, भारद्वाज मुनिवर ने हमको 

चित्रकूट अब दूर नहीं है, यूँ प्रतीत होता है मुझको 


वृक्षों में ऊँचे चीर बंधे, जिनका होना यही बताये 

मार्ग की पहचान के हेतु, लक्ष्मण ने यह चिह्न बनाये 


बड़े दाँतवाले हाथी मिल, पर्वत के पीछे रहते हैं 

उधर न कोई जाये भूल से, चिह्न यह सचेत करते हैं 


वन में सदा तपस्वी जन सब, मिल जिसका आवाहन करते 

सघन धूम दिखाई पड़ता, होंगे दर्शन अग्निदेव के 


गुरुजनों का करते सत्कार, पुरुष सिंह उन आर्य पुरुष का 

आनंद मग्न महर्षि से जो, उन राम का दर्शन करूँगा 


दो ही घड़ी में कुमार भरत तब, चित्रकूट तक आ पहुँचे

अपने साथ आये जनों से, फिर ये वचन कहे उन्होंने 


निर्जन वन में खुली भूमि पर, वीरासन में राम बैठते 

मुझ कारण संकट आया है, धिक्कार जीवन को मेरे


मेरे जन्म को है धिक्कार, मैं सब लोगों से निंदित हूँ 

उन चरणों में आज गिरूँगा, उन सबका मैं ही दोषी हूँ 


इस तरह विलाप करते ही, परम पवित्र कुटी एक देखी

शाल, ताल, अश्वकर्ण के, पत्तों से जो छायी हुई थी 


यज्ञशाला में जिसके ऊपर, कोमल कुश बिछाए गए हों 

लम्बी-चौड़ी उस वेदी सी, वन में वह शोभा पाती थी 

 

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