श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
चतुर्नवतितम: सर्ग:
श्रीराम का सीता को चित्रकूट की शोभा दिखाना
नीले, पीले, श्वेत, लाल, विविध रंगों की जो लगतीं हैं
रात्रिकाल में अग्निशिखा सम, औषधियां उद्भासित होतीं
वृक्षों की छाया से ढके, कई स्थान यहाँ घर से लगते
चम्पा, मालती आदि फूल से, सजे हुए हैं कई उद्यान
बहुत दूर तक चली गयी है, किसी जगह एक ही चट्टान
इन सबसे अति शोभा होती, सभी ओर से सुंदर लगता
फोड़ धरा को ऊपर आया, चित्रकूट पर्वत यूँ लगता
इधर एक शैया को देखो, पुन्नाग, भोजपत्र आदि की
कमल पत्र भी बिछे हुए हैं, मानो चादर हो पत्तों की
कहीं मसल कर फेंकी हुई, कमल की मालाएं पड़ीं हैं
ऊँचे सुंदर वृक्ष अनेकों, नाना तरह के फल लगे हैं
फलों, मूल, जल से सम्पन्न, अलका पुरी सा शोभित होता
इंद्रपुरी व उत्तर कुरु को, निज शोभा से तिरस्कृत करता
प्राण प्रिया हे सीते ! यदि मैं, उत्तम व्रत का पालन करता
चौदह वर्ष सानंद बिता लूँ, धर्म बढ़े वह सुख पा सकता
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में चौरानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ.
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