श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
पंचनवतितम: सर्ग:
श्रीराम का सीता के प्रति मंदाकिनी नदी की शोभा का वर्णन
तत्पश्चात कोसलनरेश ने, मिथिलेशकुमारी सीता को
बड़े ही प्रेम से भर दिखाया, पुण्य सलिला मंदाकिनी को
चंद्र समान सुंदर मुख वाली, कटिप्रदेश भी सुंदर जिनका
विदेहराज नंदिनी सीता से, कमलनयन श्रीराम ने कहा
मंदाकिनी की शोभा देखो, हंस और सारस से सेवित
अति विचित्र किनारा इसका, विविध रंगी फूलों से शोभित
फूलों-फलों से लदे पादप, तट की शोभा बढ़ा रहे हैं
कुबेर के सरोवर की भांति, इसके घाट अति मनहर हैं
अभी-अभी जल पीकर गए हैं, हरिणों के कुछ झुंड यहाँ से
शीतल स्वच्छ मंदाकिनी का, पानी गँदला हुआ है जिससे
जटा, मृगचर्म, वल्कल धारे, मुनिजन यहाँ स्नान हैं करते
उठा भुजायें दोनों ऊपर, अन्य सूर्य आराधन करते
झूम रही शाखाएं जिनकी, पत्र-फूल बिखेरें तटों पर
उन वृक्षों से सजा हुआ यह, पर्वत मानो नृत्य रहा कर
देखो, कैसी अद्भुत शोभा, कहीं मोतियों सा जल इसका
कहीं कगार दिखाई देते, करें सिद्ध जन सेवन इसका
हवा द्वारा उड़ा के लाए, ढेरों फूल तैरते इसमें
देखो हे सुंदर भामिनी, कहीं तटों पर फैले हैं वे
मीठी बोली बोलने वाले, चक्रवाक पक्षी तटों पर
सुंदर कलरव करते हैं वे, सुखद जान पड़ता है हर पल
नित्य निरंतर तुम्हारा दर्शन, बढ़ा रहा है इनकी शोभा ,
अयोध्या-वास की अपेक्षा, अधिक सुखद निवास यहाँ का
तप, संयम, मनोनिग्रह से, सम्पन्न मुनिगण यहाँ नहाते
आज चलो तुम भी मेरे संग, करने स्नान इसके जल में
सखियाँ ज्यों क्रीडा करती हैं, वैसे ही तुम उतरो जल में
श्वेत और लाल कमलों संग, क्रीड़ा करो डुबा के जल में
पुरवासियों जैसा ही समझो, तुम इस वन के निवासियों को
चित्रकूट मानो अयोध्या, मंदाकिनी को सरयू समझो
धर्मात्मा लक्ष्मण सदा ही, मेरे मन के अनुकूल हैं
रहती तुम भी सदा अनुकूल, इससे मुझे अतीव सुख है
संग तुम्हारे त्रिकाल स्नान कर, मधुर फल-मूल पा आहार
न ही कामना जाऊं अयोध्या, न राज्य पाने का विचार
गजसमूह जिसे मथ डालते, शेर और वानर जल पीते
सुंदर पुष्पों से लदे वृक्ष, जिसके तट पर शोभा पाते
ऐसी इस रमणीक नदी में, जो भी यहाँ स्नान करता है
ग्लानिरहित व सुखी नहीं हो, ऐसा जग में मनुष्य नहीं है
कारण जो रघुवंश वृद्धि के, श्रीराम कह ऐसी बातें
नील-कान्ति युक्त पर्वत पर, प्रिया के साथ लगे विचरने
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में पंचानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ.
बहुत सुंदर वर्णन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन
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