Thursday, November 9, 2017

रथ और सेनासहित भरत की यात्रा

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

एकसप्ततितम: सर्ग:

रथ और सेनासहित भरत की यात्रा, विभिन्न स्थानों को पार करके उनका उज्जिहाना नगरी के उद्यान में पहुंचना और सेना को धीरे-धीरे आने की आज्ञा दे स्वयं रथ द्वारा तीव्र वेग से आगे बढ़ते हुए सालवन को पार करके अयोध्या के निकट जाना, वहाँ से अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए आगे बढ़ना और सारथि से अपना दु:खपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश करना

राजगृह से निकल गये जब, पूर्वदिशा को बढ़े भरत
सतलज को भी पार किया, नदी सुदामा को पार कर

ऐलधन गाँव जा पहुँचे, नदी पार कर अपरपर्वत
शिला नामकी नदी जहाँ थी, गये वहाँ से शल्य कर्षण

शिलावहा को करके पार, चैत्ररथ वन में जा पहुँचे
सरस्वती गंगा संगम से, भारुदंड वन के भीतर गये

कलकल बहती कुलिंगा को, पार किया यमुना जा पहुँचे
घोड़ों को विश्राम कराया, सेना संग फिर आगे बढ़ गये

अंशुदान ग्राम से होकर, प्राग्वट नगर जा पहुंचे
धर्मवर्धन गाँव में आये, कुटिकोष्टिका नदी के तट से

तोरण गाँव से गये जम्बूप्रस्थ, बरूथ नामके स्थान पर पहुँचे
प्रातःकाल बढ़े पूर्व दिशा में, उज्जिहाना उद्यान जा पहुंचे

धीरे-धीरे पीछे आने की, दी आज्ञा तब सेना को
तीव्र गति से रथ चलाया, जुतवा शीघ्रगामी अश्वों को

एक रात्रि रहे सर्वतीर्थ में, हस्तिपृष्ठक ग्राम में पहुंचे
कपीवती को पार किया तब, कुटिका पार लोहित्य गये

एकसाल में स्थाणुमती को, गोमती को विनतग्राम में
कलिंगनगर तक जाते-जाते, थक गये थे घोड़े उनके

दे विश्राम उन्हें कुछ काल, अयोध्या पहुंचे सालवन से
सात रात्रियाँ मार्ग में आयीं, आठवें दिन अयोध्या पहुँचे


3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जोकर “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार !

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