Wednesday, October 12, 2011

सूक्ष्म शरीर




श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि

देहासक्ति

है अनादि अविद्या का बंधन, कर्त्तव्य है मुक्ति इससे
देह मात्र का पोषण करता, स्वयं का हो विनाश ही उससे

जो शरीर पोषण में रत है, आत्म तत्व देखना चाहे
ग्राह पकड़ कर मूढ़ बुद्धि वह, नदी पार करना चाहे

मोह पर विजय हुई है जिसकी, वही मोक्ष पद का अधिकारी
मोह महामृत्यु जो जाने, वही परम पद पाए भारी

देह कर्मों से मिला हुआ है, आत्मा का स्थूल भोगायतन
जाग्रत में होती अनुभूति, स्थूल पदार्थ का होता अनुभव

स्थूल से स्थूल को भोगें, जाग्रत में इसकी प्रधानता
इसके कारण जगत दीखता, जैसे गृहस्थी का घर होता

जन्म, जरा, मरण होते हैं, बचपन और जवानी इसमें
वर्णाश्रम भी यही पालता, मान-अपमान भी होते इसमें

सूक्ष्म शरीर

पांच ज्ञान इन्द्रियाँ तन में, पांच ही हैं कर्म इन्द्रियाँ
 मन, बुद्धि, चित्त और अहं, अंतः करण चार से बनता

मन संकल्प-विकल्प का कर्ता, निश्चय बुद्धि है करती
 चिंतन से चित्त कहलाता,  मैं, मैं कहता अहंकार ही

पांच प्राण भी जिसमें होते, सूक्ष्म शरीर उसे कहते
सूक्ष्म इन्द्रियां, कर्म, काम भी, अविद्या भी इसमें होते

कर्म फलों का ज्ञान कराए, सूक्ष्म शरीर अपन्ची कृत
दस इन्द्रियाँ, अंत करण मिल, पंच भूत सँग यही पुर्यष्टक
1� 9  

7 comments:

  1. बहुत ज्ञानप्रद प्रस्तुति...आभार

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  2. बेहद ज्ञानवर्धक,बहुत ही उत्तम प्रस्तुति,बधाई!

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  3. मोह पर विजय हुई है जिसकी, वही मोक्ष पद का अधिकारी
    मोह महामृत्यु जो जाने, वही परम पद पाए भारी
    bahut sukun milta hai yahan per

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  4. जन्म, जरा, मरण होते हैं, बचपन और जवानी इसमें
    वर्णाश्रम भी यही पालता, मान-अपमान भी होते इसमें

    बहुत खूब!

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  5. बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति...

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  6. अनीता जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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  7. आप सभी का आभार!

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