Friday, October 7, 2011

कैसे हो आत्म ज्ञान


 श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि

कैसे हो आत्म ज्ञान

ब्रह्म जीव के एक्य का अनुभव, जब तक खुद को नहीं हुआ हो  
मोक्ष सिद्ध न हो पायेगा, चाहे योग, ज्ञान में कुशल हुआ हो

सुंदर वीणा वादक छेड़े, मन का रंजन ही करती
विद्वत्ता, वकृत्व कुशलता, मोक्ष नहीं दिला सकती

परम तत्व को न जाना तो, शास्त्र पठन निष्फल ही है
जिसने जाना परम तत्व को, शास्त्र उसे भी अब व्यर्थ है

शब्द जाल भटका सकता है, किसी घने वन में ज्यों राही
तत्व ज्ञान ज्ञानी दे सकता, जिसने भीतर अलख जगाई

सर्प अविद्या का काटे जब, ब्रह्म ज्ञान औषधि उसकी
वेद, शास्त्र, मंत्र, औषध भी, कोई नहीं सहाय जिसकी

औषध का बस नाम ही रटें, रोग नहीं जाता तन का
ब्रह्म-ब्रह्म रटने भर से ही, अनुभव सिद्ध नहीं हो जाता

राजा हूँ कहने भर से, नहीं नरेश हुआ कोई
राज्य मिले, शत्रु भी हारें, कहलाये राजा सोई

धरती में यदि गड़ा खजाना, श्रम के बल हासिल होता
सदगुरु के उपदेश पर चलके, लक्ष्य को साधक पा लेता

दृष्य प्रपंच जो दीख रहा है, द्रष्टा में विलीन हो जाये
तभी मोक्ष का अनुभव होगा, शेष कहीं न कुछ रह जाये

भव बंधन से छूटना चाहे, करे मनन, निदिध्यासन भी
शक्ति पूर्ण लगा दे अपनी, पायेगा वह मोक्ष तभी  





4 comments:

  1. बेहतरीन ...।

    ReplyDelete
  2. यह श्रृंखला अनमोल है।

    ReplyDelete
  3. वाह अनमोल खज़ाना लुटा रही है आप्।

    ReplyDelete
  4. औषध का बस नाम ही रटें, रोग नहीं जाता तन का
    ब्रह्म-ब्रह्म रटने भर से ही, अनुभव सिद्ध नहीं हो जाता
    सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete