Wednesday, November 17, 2010

न तुमसा कोई न बढ़कर
तुम सहज प्रेम दे बुला रहे,
जग एक छलावा, फीका है
फिर भी आकर्षण लुभा रहे !

मन के ऊपर जो परतें हैं
हैं तुच्छ, घृणित, हैं दुखदायक
तुम ढके हुए भीतर कोमल
निर्दोष प्रेम ! हो सुखदायक !

जग में पाना निज को खोना
जग खोकर ही निजता पाते
जिसको जीवन हम समझ रहे
मरकर ही उस द्वारे जाते !

अनिता निहालानी
१७ नवम्बर २०१०

1 comment:

  1. जिसको जीवन हम समझ रहे
    मरकर ही उस द्वारे जाते !
    सत्य है!

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