Friday, October 29, 2010

तुम आते नित रसधार लिये

तुम आते नित रसधार लिये
फिर तृषित रहा क्यों उर मेरा
क्यों हाथ बढ़ा छू ना सकूं
लहराता रेशम पट तेरा !

है गहन अंध घनघोर घटा
पथ बूझ नहीं पाते नैना
तुम स्नेह दीप जला रखना
यूँ बीतेगी सारी रैना !

तुम प्रियतम ! हो श्रेष्ट तुम्हीं
तुमसे ही जीवन जीवन है
जो तोड़ नहीं पाता मन वह
स्वयं डाला मैंने बंधन है !

4 comments:

  1. कुछ ऐसी मेरी छटपटाहट भी है .............. बहुत सुन्दर ... बहुत सुन्दर ..बधाई

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  2. तुम आते नित रसधार लिये
    फिर तृषित रहा क्यों उर मेरा
    क्यों हाथ बढ़ा छू ना सकूं
    लहराता रेशम पट तेरा !

    bahut sundar...

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  3. बहुत सुन्दर भाव से सजी रचना

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