श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
शततम: सर्ग:
श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
बुद्धिमान, कुलीन, पवित्र जन, अनुराग अपने में रखते
सेनापति तुमने जिन्हें बनाया, क्या वे सब ऐसे ही हैं
प्रधान योद्धा सभी तुम्हारे, रण कर्म में दक्ष पुरुष हैं
उनके शौर्य की परीक्षा भी, लेते रहते क्या कभी तुम
सत्कार सहित उनका आदर भी, करते तो रहते हो तुम
नियत किया वेतन, भत्ता, ठीक समय पर सदा ही देते
यदि विलम्ब से मिलता वेतन, सैनिक अति कुपित हो जाते
क्या उत्तम मंत्री, अधिकारी, प्रेम सभी तुममें हैं रखते
क्या वे सभी तुम्हारी खातिर, प्राण देने को तत्पर रहते
राजदूत जिसे बनाया तुमने, वासी निज देश का है न
विद्वान्, कुशल, प्रतिभाशाली, सद्विवेक से युक्त भी है न
शत्रु पक्ष के अठारह तीर्थ, पन्द्रह तीर्थ अपने पक्ष के
तीन-तीन गुप्तचरों से, क्या सदा ही तुमसे परखे जाते
जिन शत्रुओं को किया निष्कासित, यदि लौट कर वे आते
दुर्बल उन्हें समझकर, उपेक्षा तो उनकी नहीं करते
संग नास्तिक ब्राह्मणों का तो, कभी भी नहीं तुम करते हो
कुशलता से विचलित कर देते, परमार्थ से बुद्धि को वो
अज्ञानी होते हुए भी, अपने को बड़ा ज्ञानी समझें
वेद विरुद्ध होने से उनका, ज्ञान अशुद्ध, तर्क वे करते
प्रमाणभूत जो धर्म शास्त्र हैं, उनमें वे विश्वास न रखते
केवल ले बुद्धि का आश्रय, व्यर्थ ही बात बनाया करते
तात ! हमारे वीर पूर्वजों की, अयोध्या मातृ भूमि है
जैसा नाम वैसा गुण इसका, द्वार सभी और से दृढ हैं
गज, अश्व, रथों से परिपूर्ण, अपने अपने कर्म में रत जो
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य यहाँ हैं, उत्साही, जितेन्द्रिय, श्रेष्ठ वो
नाना राजभवन और मंदिर, शोभा उसकी सदा बढ़ाते
विद्वानों से भरी है नगरी, तुम उसकी रक्षा तो करते
बेहतरीन प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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