श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
शततम: सर्ग:
श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
जटा, चीरवस्त्र धारण कर, जोड़े हाथ भरत गिरे भू पर
मानो प्रलयकाल में दिनकर, गिरे पड़े हों इस धरती पर
स्वजन के लिए अति ही कठिन था, उन्हें देखना इस हाल में
किसी तरह पहचाना उनको, उन्हें देखकर राम दुखी थे
श्रीराम ने उन्हें उठाया, मस्तक सूंघ गले से लगाया
निज गोदी में उन्हें बिठाकर, फिर आदर से उनसे पूछा
तात ! कहाँ है पिताजी हमारे, इस वन में क्यों आए हो
उनके जीतेजी न सम्भव, तुम कितने दुर्बल हो गए हो
बहुत दिनों बाद देखा तुमको, महाराज तो जीवित हैं न
ऐसा तो नहीं,स्वर्ग गए वे , सहसा तुम आये हो यहां
तात भरत ! तुम अभी हो बालक, राज्य तो पूर्ण सुरक्षित है न ?
सदा धर्म पर टिके जो रहते, वे महाराज कुशल से हैं न ?
राजसूय व अश्वमेध का, जिन्होंने अनुष्ठान किया है
सत्यप्रतिज्ञ वे महाराजा, पूरी तरह सकुशल तो हैं
जो रहें सदा धर्म में तत्पर, विद्वान् व ब्रह्मवेत्ता हैं
इक्ष्वाकु कुल के आचार्य, वसिष्ठ तुमसे पूजित तो हैं
माँ कौसल्या सुख से हैं, सुमित्रा, कैकेयी भी आनंदित
उत्तम कुल में जो उत्प्नन हैं, विनय सम्पन्न वह पुरोहित
सत्कार तो उनका करते हो, हवनविधि के जो हैं ज्ञाता
क्या वे तुम्हें सूचित करते हैं, हवन का सही समय है क्या
देवताओं, पितरों, भृत्यों, का, गुरुजनों और ब्राह्मणों का
सम्मान तो तुम करते हो, पिता सम वृद्धों व वैद्यों का
मन्त्ररहित श्रेष्ठ बाणों का, मन्त्र सहित उत्तम अस्त्रों का
जिनको उत्तम ज्ञान प्राप्त है, तुमसे आदर पाते सुन्धवा
अपने जैसे शूरवीरों, शास्त्रज्ञ, और कुलीन जनों को
बाहरी चेष्टाओं से ही, मन की बात समझ लेते जो
ऐसे जितेन्द्रिय योग्य जनों को, तुमने मंत्री पद दिया है ?
राजा की हरएक विजय का, उचित मन्त्रणा ही कारण है
सफल तभी होती है मन्त्रणा, नीतिकुशल हों यदि अमात्य
गुप्त सर्वथा रखें उसको, तभी विजयी होता है राज्य
असमय तो नहीं नींद घेरती, समय पर जग तो जाते हो
रात्रि के पिछले पहर में, चिंतन अर्थ का तो करते हो ?
भारत से इतने सारे प्रश्न और साथ में क्या कर्तव्य हैं ये बताते हुए कहीं तो मन में शंका भी हुई ही होगी ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअवश्य, स्वागत व आभार संगीता जी !
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