श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
शततम: सर्ग:
श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
गूढ़ विषय पर मंत्रणा तुम, बैठ अकेले तो नहीं करते
अथवा सबके साथ बैठकर, गुप्त बात भी फैला देते
जिसका साधन अति ही लघु है, किन्तु दीर्घ फल देने वाला
उस कर्म को शीघ्र तो करते, कर विलम्ब उसे नहीं टाला
पूर्ण हुए या होने वालें, कर्म तुम्हारे प्रकट तब होते
ऐसा तो नहीं भावी कृत्य , पहले से ही सभी जानते
तुमने निश्चय किया है जिनका, किन्तु अभी न प्रकट किया है
तर्क व युक्तियों आदि से, उनको अन्य जान लेते हैं क्या
एक विद्वान् को निकट रखते, हजार मूर्खों के बदले क्या,
कर सकता कल्याण वही जब, संकट जब छाया हो गहरा
हजार मूर्ख भी नहीं सहायक, एक सुयोग्य मंत्री हो यदि
शूरवीर, चतुर, नीतिज्ञ ही, दे सकता है सम्पत्ति बड़ी
मुख्य व्यक्तियों को क्या तुमने, मुख्य कार्य में नियुक्त किया
मध्यम को मध्यम कार्य में, निम्न को लघु कर्म में लगाया
घूस नहीं लेते जो निश्छल, बहुत काल से कार्य कर रहे
भीतर-बाहर से पवित्र हों, उत्तम कार्य सौंपा है उन्हें
कठोर दण्ड से पीड़ित होकर, प्रजा तुम्हारे राज्य की कहीं
अमात्यों व मंत्रियों का, तिरस्कार तो नहीं है करती
पतित यजमान का जैसे याजक, स्त्रियाँ कामी, पतित पुरुष का
अपमान तो नहीं करती प्रजा, अधिक कर लेने पर तुम्हारा
जो साम-दाम में अति कुशल है, राजनीति का भी ज्ञाता है
राज्य हड़पने की इच्छा रख, भृत्यों को फोड़ने में रत है
मरने से जिसे भय नहीं, ऐसे शत्रु को जो नहीं जीतता
वह स्वयं उसके हाथों से, एक न एक दिन मारा जाता
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत सरल शब्दों में नीति का उपदेश
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
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ReplyDeleteमरने से जिसे भय नहीं, ऐसे शत्रु को जो नहीं जीतता
वह स्वयं उसके हाथों से, एक न एक दिन मारा जाता
बहुत खूब 👌👌
शानदार सृजन।
ReplyDeleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteमीना जी, उषा जी, अभिलाषा जी, कुसुम जी व अमित जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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