Friday, January 20, 2017

लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का प्रयाग में गंगा-यमुना-संगम के समीप भरद्वाज आश्रम में जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

चतु:पञ्चाश: सर्गः

लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का प्रयाग में गंगा-यमुना-संगम के समीप भरद्वाज आश्रम में जाना, मुनि के द्वारा उनका अतिथि सत्कार, उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन

सुंदर रात बिता तीनों ने, उस महान वृक्ष के नीचे
आगे को प्रस्थान किया, होकर वन के भीतर से

गंगा-यमुना का संगम जो, वहीं उन्हें जाना आगे था
मनहर स्थान देखते बढ़ते, पहले कभी नहीं देखा था  

सजे हुए सुंदर फूलों से, भांति-भांति के वृक्ष दिखे
दिन जब प्रायः बीत गया, कहा लक्ष्मण से राम ने

अग्निदेव की ध्वजारूप यह, धूम उठ रहा है देखो
भरद्वाज मुनि यहीं हैं, प्रयाग निकट आया समझो

निश्चय ही हम आ पहुंचे हैं, गंगा-यमुना के संगम पर
दो नदियों का जल टकराता, सुन सकते हैं उसका स्वर

फल-मूल, काष्ठ आदि से, जो अपनी जीविका चलाते
काटी हुई उनकी लकड़ियाँ, वृक्ष भी वे नजर में आते

इस प्रकार बात करते थे, राम-लक्ष्मण वीर धनुर्धर
सूर्यास्त होते-होते वे, जा पहुंचे मुनि आश्रम पर

देख वेशभूषा वीरों की, पशु-पक्षी भयभीत हुए थे
दो घड़ी में तय हो सकता, गए मुनि तक उस मार्ग से

सीता सहित वीर वे दोनों, कुछ दूरी पर खड़े हो गये
 अनुमति पाकर भारद्वाज से, किया प्रवेश पर्णशाला में

तीनों कालों के थे ज्ञाता, दिव्य दृष्टि प्राप्त थी जिनको
चित्त समाहित रहता जिनका, व्रतधारी उन महामुनि को

किया प्रणाम हाथ जोड़कर, फिर अपना परिचय दे डाला
वन आने का कहा प्रयोजन, सारा विवरण कह डाला

आतिथ्य सत्कार रूप में, दिए मुनि ने अर्घ्य व जल
 की व्यवस्था रहने की दे, गौ, अन्न, व जंगली फल



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