Tuesday, May 17, 2016

श्रीराम के वनगमन से रनवास की स्त्रियों का विलाप तथा नगरनिवासियों की शोकाकुल अवस्था

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

एकचत्वारिंश सर्गः

श्रीराम के वनगमन से रनवास की स्त्रियों का विलाप तथा नगरनिवासियों की शोकाकुल अवस्था

माताओं संग पूज्य पिता को, दूर से ही किया प्रणाम
रथ द्वारा नगर से बाहर, हाथ जोड़ जाते थे राम

रनिवास की रानियों में, हाहाकार मचा उस काल
हम अनाथ के नाथ बने जो, कहाँ जा रहे वह श्रीराम

सुखकर्ता, दुखहर्ता थे वे, कभी क्रोध नहीं करते थे
संवेदित होते परदुःख से, रूठों को मना लेते थे 

जो मान माता को देते, वही हमें दिया करते थे
राजा के कहने पर आज, दूर सभी से कहाँ जा रहे

इस प्रकार रानियाँ सारी, उच्च स्वर से क्रन्दन करतीं
बछड़ों से बिछुड़ी गउओं सी, दुख से आर्त हुईं रोतीं

अंतः पुर का क्रन्दन सुनकर, राजा ने अति दुःख पाया
पुत्र शोक से व्याकुल थे वे, सबके दुःख से शोक मनाया

उस दिन अग्निहोत्र बंद था, भोजन नहीं बना घरों में
कोई काम न किया प्रजा ने, सूर्य गये अस्ताचल में

त्याग दिया गजों ने अपने, मुँह में लिया हुआ चारा भी
 बछड़ों को न दूध मिला, पा प्रथम पुत्र न माँ हर्षाई

मंगल, बुध, गुरू, आदि ग्रह, वक्र गति से रात्रि में चलते
चन्द्रमा के पास पहुँचकर, क्रूरकांति से युक्त हो गये

ग्रह, नक्षत्र हुए निस्तेज, धूमाच्छन्न, विपरीत मार्गी
वायु से मेघों की माला, सागर सी जान पडती थी

हिलने लगा नगर सारा तब, व्याकुल अति हो उठीं दिशाएं
अंधकार सा छाया उनमें, दीन दिशा पा सब अकुलाये

दीर्घ श्वास ले लगे कोसने, राजा को अयोध्या के जन
शोक मग्न अश्रु से पूरित, लगता नहीं था कोई प्रसन्न

शीतल वायु नहीं बहती थी, सौम्य नहीं रहा चंद्रमा
सूर्य नहीं समुचित चमका, व्याकुल सारा जग हो उठा

भूल गये माँ-बाप को बालक, पतियों को स्त्रियाँ भूलीं
भाई भाई को न स्मरते, सब के उर में स्मृति राम की

जो थे स्नेही मित्र राम के, सुध-बुध खो बैठे वे अपनी
शोक भार से थे आक्रांत, देर रात तक आँख न लगी

भय, शोक से हुई प्रज्ज्वलित, उसी प्रकार अयोध्या नगरी
मेरुपर्वत सहित यह पृथ्वी, इंद्र रहित ज्यों डगमग करती  

हाथी, घोड़े सहित नगर में, आर्तनाद होता था भयंकर
सैनिक भी दुःख से व्याकुल थे, विरह राम का करता आहत



इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में इकतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.

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