Thursday, May 12, 2016

पुरवासियों तथा रानियों सहित महाराज दशरथ की शोकाकुल अवस्था

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

चत्वारिंशः सर्गः

सीता, राम और लक्ष्मण का दशरथ की परिक्रमा करके कौसल्या आदि को प्रणाम करना, सुमित्रा का लक्ष्मण को उपदेश, सीता सहित श्रीराम और लक्ष्मण का रथ में बैठकर वन की और प्रस्थान, पुरवासियों तथा रानियों सहित महाराज दशरथ की शोकाकुल अवस्था 

एक ओर राम कहते थे, रथ हांकने को सुमन्त्र से
दूजी ओर न बढ़ने देता, जनसमुदाय उन्हें घेर के

दुविधा में पड़ गये सारथि, दोनों से कुछ कर न सके
न तो रथ बढ़ाया आगे, न ही सर्वथा रोक सके

श्रीराम के वनगमन पर, अश्रु भिगोते थे भूमि
पीड़ित हुआ नगर सारा, उड़ती धूल शांत हो गयी

हाहाकार मचा हुआ था, थे अचेत से लोग सभी
व्याकुल चित्त देख सभी को, राजा गिरे वृक्ष की भांति

मीनों के उछलने से ज्यों, कमलों से जल कण बरसें
खेद जनित अश्रु बहते थे, नेत्रों से स्त्रियों के वैसे

कोलाहल महान प्रकटा, हा राम ! कहता था कोई
करुण क्रन्दन कर रोते थे वे, दुखी अति रानियाँ भी

उसी समय राम ने देखा, पीछे मुड़कर उस मार्ग को
भ्रांतचित्त पिता आते थे, दुःख में डूबी माता को

बंधा रज्जु से अश्व शावक ज्यों, देख नहीं पाता माता को
धर्म के बंधन में बंधे थे, देख सके न राम भी उनको

पैदल चलने योग्य नहीं थे, सुख भोगने के योग्य जो
पैदल आते देख उन्हें तब, कहा सारथि से बढ़ने को

अंकुश से पीड़ित हाथी को, कष्ट सहन न होता उसका
असहय हुआ था श्रीराम को, माँ-पिता का दुःख भोगना  

बंधे हुए बछड़े की माता, संध्या काल में दौड़ी आती
उसी प्रकार माता कौसल्या, उनकी ओर चली आ रही

हा राम ! हा सीते ! कहती, रथ के पीछे दौड़ रही थीं
अश्रु बहातीं उनके हित वे, इधर-उधर सी डोल रही थीं

राजा कहते थे चिल्लाकर, हे सुमन्त्र ! रथ को रोको
दुविधा में थे पड़े सारथि, तभी राम बढ़ने को कहते

अति दुःख का होगा कारण, यहाँ अधिक रुकना हित सबके
सुनी नहीं थी बात आपकी, यही लौटने पर कहिये

श्रीराम की बात मानकर, ली आज्ञा तब सुमन्त्र ने
स्वतः चल रहे हांका उनको, अश्व बढ़ाए तीव्रगति से

दशरथ के जो साथ चल रहे, देह मात्र से जन वे लौटे
कुछ तो पीछे बढ़ते गये, तन-मन दोनों से नहीं लौटे

यदि इच्छा हो यह किसी हित, पुनः शीघ्र लौट कर आये
जाते नहीं दूर तक पीछे, कहा मंत्रियों ने राजा से

सर्वगुणसंपन्न राजा का, भीग रहा था तन स्वेद से
मूर्तिमान विषाद स्वरूप, होकर खड़े लगे देखने

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में चालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.



No comments:

Post a Comment