Wednesday, February 12, 2014

ब्रह्मपुत्र कुश के चार पुत्रों का वर्णन

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्वात्रिंशः सर्गः
ब्रह्मपुत्र कुश के चार पुत्रों का वर्णन, शोण भद्र-तटवर्ती प्रदेश को वसु की भूमि बताना, कुशनाभ की  सौ कन्याओं का वायु के कोप से ‘कुब्जा’ होना

कहा मुनि ने, हे श्री राम, महातपस्वी इक राजा थे
ब्रह्मा के पुत्र साक्षात, पूर्वकाल में कुश नाम के

हर संकल्प पूर्ण होता था, उनका बिना किसी बाधा के
सत्पुरुषों का करते आदर, धर्म के ज्ञाता व महान थे

उतम कुल वाली पत्नी से, जो थी विदर्भ की राजकुमारी
चार पुत्र पाए राजा ने,  थे सभी महान बड़े उत्साही

कुशाम्ब, कुशनाभ, असूर्त-रजस, व वसु नाम उन चारों के थे
राजा कुश प्रजा रक्षक थे, पुत्र सभी सत्यवादी थे

पिता ने आज्ञा दी पुत्रों को, पालन प्रजा का करें सभी
पृथक नगर बनवाये सबने, प्रथम पुत्र का था ‘कौशाम्बी’

कुशनाभ का नगर ‘महोदय’, ‘धर्मारण्य’ असूर्त-रजस का
‘वसुमती’ के नाम से प्रचलित, नगरव्रज था राजा वसु का

पांच श्रेष्ठ पर्वत भी सुशोभित, वसुमती के थे चारों ओर
सुंदर सोन नदी आयी है, दक्षिण-पश्चिम से यहाँ बहकर

‘सुमागधी’ नाम से सोन, मगध देश में जानी जाती
पांच पर्वतों के मध्य यह, माला की भांति है लगती

सुंदर उपजाऊ खेत हैं, दोनों तट पर सोन नदी के
पूर्वोत्तर की ओर यह बहती, शोभित हरी—भरी खेती से

घृताची अप्सरा के द्वारा, राजर्षि कुशनाभ ने
सौ कन्याएं भी पाई थीं, सब की सब सुंदर थीं वे

एक दिन सुसज्जित होकर, नृत्य-गीत में डूबी थीं वे
उत्तम गुणों से थीं सम्पन्न, देख उन्हें कहा वायु देव ने

सुन्दरियों, मैं तुम्हें चाहता, बनो सभी मेरी भार्याएँ
त्याग करो मनुष्य भाव का, दीर्घ आयु पाओगी इससे

युवावस्था नहीं है स्थिर, मानव देह में क्षीण जो होती
मुझसे जुड़ अमर हो जाओ, अक्षय यौवन प्राप्त करोगी



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