Tuesday, December 20, 2022

भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

एकादशाधिकशतम: सर्ग:


वशिष्ठ जी के समझाने पर भी श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरक्त न होते देख भरत का धरना देने को  तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें  समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना 


​​तब राज पुरोहित मुनि वसिष्ठ ने, श्रीराम से पुनः यह कहा 

तीन गुरू  होते हैं पुरुष के, आचार्य, माता और  पिता 


पिता तन को उत्पन्न करता, इसीलिए उसे गुरु कहा है 

ज्ञान प्रदान करता आचार्य, अतः गुरु का पद उसे मिला है 


हे रघुवीर ! मैं हूँ आचार्य,  तुम्हारा व तुम्हारे पिता का

सत्पथ त्यागी नहीं बनोगे, पालन करो मेरी आज्ञा  


सभासद, बंधु, सामंत राव, अभी पधारे हुए यहाँ हैं 

धर्मानुकूल बर्ताव इन प्रति, सन्मार्ग का पालन ही है 


धर्मपरायणा वृद्ध माँ की, नहीं टालने योग्य फ़रियाद 

उनकी आज्ञा के पालन से, धर्म उल्लंघन की क्या बात 


सत्य, धर्म, शौर्य सम्पन्न , भरत तुम्हारे आत्मस्वरूप हैं 

उनकी बात मान लेने से, हानि धर्म की नहीं कोई है 


सुमधुर वचनों को सुन मुनि के, श्री राघवेंद्र ने वचन कहे 

बदला कभी चुका न सकते, उपकारों का माता-पिता के


स्नेहपूर्ण व्यवहार वे करते, शक्ति भर पदार्थ देते हैं 

सुखद बिछौने पर सुलाते, उबटन आदि नित्य लगाते हैं


अतः जन्मदाता पिता ने, जो आज्ञा मुझे सौंपी है 

मिथ्या कभी नहीं हो सकती, उनकी वाणी मुझे प्रिय है 


ऐसा कहने पर भाई के, भरत का मन उदास हो गया 

निकट ही बैठे सूत सुमंत्र से, वचन दुखी हो यही कहा 


जैसा साहूकार द्वारा, निर्धन हुआ ब्राह्मण करता है 

बिना खाए कुछ उसके दर पर, मुँह ढककर पड़ा रहता है 


इस वेदी पर कुशा बिछवाँ दें, यहीं पर मैं धरना दूँगा 

जब तक राम प्रसन्न नहीं होते, मुख ढक मैं यहीं रहूँगा 


यह सब सुनकर सुमंत्र दुखी हो, मुँह ताकने लगे राम का 

स्वयं ही ले चटाई कुश की, भरत ने वहाँ डेरा डाला 


​​महायशस्वी राम ने कहा, क्या बुराई की है मैंने 

अन्यायी तुम्हें लगता हूँ, धरना दोगे मेरे सामने


ब्राह्मण को अधिकार रोक सके, अन्याय को देकर धरना

राजतिलक धारी क्षत्रियों को, विधान नहीं है धरने का 


परित्याग कर इस व्रत का, शीघ्र अयोध्या पुरी को जाओ 

जनपद जन से भरत ने कहा, आप ही राम को समझाओ


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