Friday, December 23, 2022

श्रीराम का भरत को समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

एकादशाधिकशतम: सर्ग:


वशिष्ठ जी के समझाने पर भी श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरक्त न होते देख भरत का धरना देने को  तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें  समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना 


सभासद व मंत्रियों से कहा, सुनें सभी, मैंने न माँगा 

कभी पिता से अवध का शासन,  माता से भी नहीं कहा 


साथ ही नहीं है सम्मति मेरी, वनवास में श्री राम के 


फिर भी यदि आवश्यक इनको, पिता की आज्ञा का पालन 

इनके बदले मैं ही करूँगा, चौदह वर्ष वन में चारण 


भाई भरत की इस बात से, अति विस्मय हुआ श्री राम को 

कहे वचन तब देख उन्होंने, पुरवासी व अन्य  सभी को 


पिताजी ने निज जीवन में, कोई वस्तु बेची या ख़रीदी 

उसे बदल नहीं अब सकते, अथवा धरोहर भी हो रखी


नहीं बनाना प्रतिनिधि किसी को, मुझे इस वनवास के लिए 

सामर्थ्य वान हेतु निन्दित है,  काम लेना भी प्रतिनिधि से


कैकेयी की माँग उचित थी, पुण्य किया पिता ने उसे दे


भरत बड़े ही क्षमाशील हैं, गुरुजन का आदर करते हैं 

सत्य प्रतिज्ञ इन महात्मा में, कल्याण कारी सब गुण  हैं  


चौदह वर्षों की अवधि पूर्ण कर, जब मैं वन से लौटूँगा 

धर्मशील प्रिय भरत  के साथ, भूमंडल का राज करूँगा 


कैकेयी ने वर माँगा, मैंने उसका किया है पालन 

अब तुम मानो मेरा कहना, वर को साधो, कर के शासन  


महाराज दशरथ को अपने, असत्य बंधन से मुक्त करो 


 इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में 

एक सौ ग्यारहवाँ सर्ग पूरा हुआ.

 


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